Book Title: Samayik Swadhyaya Mahan
Author(s): Bhanvarlal Pokharna
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

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________________ MEL. सामायिक-स्वाध्याय महान 0 श्री भंवरलाल पोखरना मानव देव एवं दानव के बीच की कड़ी है। वह अपनी सवृत्तियों के द्वारा देवत्व को प्राप्त कर सकता है और असद्वृत्तियों के द्वारा दानव जैसी निम्न कोटि में भी पहुँच सकता है। मनुष्य के पास तीन महान् शक्तियाँ हैंमन, वचन एवं काया। इन तीन शक्तियों के बल पर वह प्रशस्त-अप्रशस्त, चाहे जैसा जीवन बना सकता है, लेकिन आज वह इस आधुनिक चकाचौंध में फंसकर विषय-वासना के भोग का कीट बन गया है। वह इस विज्ञान जगत की यांत्रिक शक्ति से प्रभावित होकर अपनी आध्यात्मिक महान् शक्ति से परे हट गया है । ___ मानव इस मन, वचन, काया की शक्ति के अलावा भी एक महान विराट शक्ति का स्वामी है, जिससे वह अनभिज्ञ होकर दिनोंदिन कंगाल बनता जा रहा है। जिस प्रकार इस आधुनिक विज्ञान को समझने के लिये साहित्य है, विद्यालय हैं और अध्यापक हैं, उसी प्रकार इस आध्यात्मिक विज्ञान को समझने के लिये भी दूसरे प्रकार का साहित्य है, विद्यालय हैं और दूसरे ही आध्यात्मिक गुरु हैं। जिस तरह इस सांसारिक विद्या को पढ़कर हम डॉक्टर, कलक्टर, बैरिस्टर आदि बनते हैं, पर ये पद तो इस जीवन के पूरे नहीं होने से पहले ही समाप्त हो जाते हैं अथवा इस जीवन में इन्द्रियों के पोषण के सिवाय कुछ नहीं मिलता है और यह विद्या भी इस जीवन के साथ समाप्त हो जाती है। न पद रहता है न विद्या। और यह सांसारिक विद्या इस जीव का संसार बढ़ाती ही रहती है। परन्तु आध्यात्मिक विद्या तो हमको श्रावक, साधु, उपाध्याय, प्राचार्य, अरिहन्त एवं सिद्ध तक बना देती है। इन पदों की महत्ता इतनी है कि संसार के सारे डॉक्टर, कलक्टर, बैरिस्टर आदि सब पदाधिकारी इन पदाधिकारियों को नमन करते और चरणों की रज झाड़ते हैं, और यह पद जीवन में कभी समाप्त नहीं होता और जितनी विद्या प्रात्मसात करली जाती है वह इस जीवन के साथ समाप्त नहीं होती, अगले जीवन के साथ चलती रहती है, जीव चाहे किसी गति में विगति करता रहे। स्वर्गीय आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा० का यही उद्घोष था कि सामायिक-स्वाध्याय करके आत्मा का उत्थान करो। और उन्होंने इसी नारे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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