Book Title: Samarsinh Author(s): Gyansundar Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar View full book textPage 7
________________ समरसिंह ... कंतार चोर सावय समुद्ददारिद्दरोगरिउरुद्दा मुश्चंति अविग्घेणं जे सेत्तुजं धरति मणे DESE=== SESEZES ZSEBESSSSSSSS श्रीनाभिमूनो ! जिन सार्वभौम वृषध्वज त्वमतये ममेहा षड्जीवरक्षापर देहि देवी भर्षितं स्वं पदमाशुवीर हे श्री नाभिराधा के पुत्र जिनों के चक्रवर्ति वृषध्वज श्री वृषभ ! आपको नमस्कार करने की मेरी इच्छा है । षटकाय के जीवों की रक्षा में तत्पर वीरमहावीर ! भाप अपना देवों से पर्चित पद (मोक्ष) मुझे दीजिये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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