Book Title: Sadhna ka Swarup aur Acharya Hastimal ki Sadhna Author(s): Kanhaiyalal Lodha Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 1
________________ साधना का स्वरूप और आचार्य श्री की साधना Jain Educationa International साधना का स्वरूप व प्रकार : खाना, 1 पीना, देखना, सुनना, विलास करना आदि द्वारा क्षणिक सुखों का भोग तथा कामना पूतिजन्य दुःख का वेदन तो मनुष्येतर प्राणी भी करते हैं । मनुष्य की विशेषता यही है कि वह दुःख रहित अक्षय - प्रखंड अनंत सुख का भी भोग कर सकता है । जो मनुष्य ऐसे सुख के लिए प्रयत्नशील होता है, उसे ही साधक कहा जाता है । प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. ऐसे ही एक उत्कृष्ट साधक थे । यह नियम है कि दुःख मिलता है - श्रसंयम, कामना, ममता, अहंता, राग, द्वेष, मोह, आसक्ति, विषय, कषाय आदि दोषों से और सुख मिलता हैक्षमा, मैत्री, निरभिमानता, विनम्रता प्रादि सद्गुणों से । अतः दुःख रहित सुख पाने का उपाय है दोषों की निवृत्ति एवं गुणों की अभिव्यक्ति । दोषों की निवृत्ति को निषेधात्मक साधना एवं गुणों की अभिव्यक्ति व क्रियान्विति को विधिआत्मक साधना कहा जाता है । साधना के ये दो ही प्रमुख अंग हैं - ( १ ) निषेधात्मक साधना और ( २ ) विधि प्रात्मक साधना । निषेधात्मक साधना में जिन दोषों का त्याग किया जाता है उन दोषों के त्याग से उन दोषों से विपरीत गुणों की अभिव्यक्ति साधक के जीवन में सहज होती है, वही विधि - प्रात्मक साधना कही जाती है । जैसे वैर के त्याग से निर्वैरता की उपलब्धि निषेधात्मक साधना है और मित्रता की अभिव्यक्ति विधि- प्रात्मक साधना है । जैसा कि 'आवश्यक सूत्र' में कहा है- "मित्ति मे सव्व भूएसु, वैरं मज्भं न केणइ ।” अर्थात् मेरा सब प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव है, किसी भी प्राणी के प्रति वैरभाव नहीं है । यहाँ वैरत्याग व मैत्रीभाव दोनों कहा है । इसी प्रकार हिंसा के त्याग से हिंसारहित होना निषेधात्मक साधना है और दया, दान, करुणा, वात्सल्य आदि सद्गुणों की अभिव्यक्ति विधि प्रात्मक साधना है मान के त्याग से निरभिमानता की उपलब्धि निषेधात्मक साधना है और विनम्रता का व्यवहार विधि - प्रात्मक साधना है। लोभ के त्याग से निर्लोभता की उपलब्धि निषेधात्मक साधना है और उदारता की अभिव्यक्ति विधि- प्रात्मक साधना है इत्यादि । श्री कन्हैयालाल लोढ़ा For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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