Book Title: Sadhna ka Sartattva Samta Author(s): Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf View full book textPage 3
________________ हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि दिनकर ने की तरह हम भी अनन्त काल के उन मित्रों को, बहुत ही महत्वपूर्ण बात लिखी है जो हमारे साथ अत्यन्त अविकसित अवस्था निगोद क्षमा शोभती उस भुजंग को में भी रहे हैं और नरक में भी उन्होंने हमारा साथ जिसके पास गरल हो, नहीं छोड़ा, न देवलोक में ही, वे हमारे से बिछुड़े / उसको क्या जो दंतहीन मित्र वनकर रहे, पर उन्होंने सदा दुश्मनों का पार्ट विषहीन विनीत सरल हो। अदा किया। लेकिन हम भूल से उन्हें मित्र मानते IIKE जहाँ नहीं सामर्थ्य शोध की, क्षमा वहाँ निष्फल है। रहे / गरल चूंट पी जाने का विष है वाणी का छल है / जैन आगम साहित्य में ऐसे सैकड़ों प्रसंग हैं जो एक बार मुल्ला नसीरुद्दीन मार्ग में बैठे हुए थे / एक व्यक्ति ने नसीरुद्दीन को पूछा कि अमुक 8 क्षमा के महत्व को उजागर करते हैं। गजसुकुमाल गाँव कितना दूर है ? नसीरुद्दीन ने कहा-नजदीक मुनि जो एकान्त शान्त स्थान पर ध्यानमुद्रा में भी है और दूर भी है। उसने कहा-तुम तो पहेली खड़े थे। सोमिल ने उन्हें देखा और वह क्रोध से बुझा रहे हो। नजदीक भी बता रहे हो और दूर र तिलमिला उठा। इस दुष्ट ने मेरी पुत्री के साथ भी। नसीरुद्दीन ने कहा--तम जिस गाँव की बात विवाह करने का सोचा था पर यह साधू बन गया __ कर रहे हो, वह गाँव तो पीछे छूट गया है यदि है / इसने मेरी पुत्री के साथ छल किया है / अब मैं पीछे लोटोगे तो गाँव नजदीक है और आगे बढ़ोगे इसे दिखाता हूँ इस छल का चमत्कार / क्रोध से तो गाँव दूर होता चला जायेगा। हम भी यदि अन्धे बनकर उसने गीली मिट्टी की सिर पर पाल कषाय के क्षेत्र में पीछे हटेंगे तो मोक्ष दूर नहीं है बाँधी और उसमें खैर के अंगारे रख दिये / यदि गजसकमाल मनि आँख उठाकर भी देख लेते तो और यदि आगे बढ़ते चले गये तो मोक्ष दर होता र चला जायेगा / इसलिए हम कषाय से पीछे हटेंगे तो वह वहीं पर जलकर भस्म हो जाता, पर उस क्षमा मोक्ष प्राप्त हो जायेगा / यदि हम कषाय के क्षेत्र में के देवता ने क्षमा का जो ज्वलन्त आदर्श उपस्थित आगे बढ़ते चले गये तो मोक्ष दूर होता चला जायेगा। REE किया वह किससे छिपा हुआ है ? मेतार्य मुनि की आपको यह स्मरण होगा कि नमस्कार महामन्त्र के ho कहानी, आर्य स्कन्दक मुनि का पावन प्रसंग सभी के पांच पद हैं। उन पदों का आचार्यों ने रंग बताया लिए प्ररणा स्रात ह जब हम उन पावन प्रसगा का है। नमो अरिहंताणं का रंग श्वेत है / सिद्धाणं का पढ़ते हैं तब हमारा हृदय श्रद्धा से नत हो जाता है। रंग रक्त है। आचार्य का रंग पीत है। उपाध्याय का का Oil हमारे श्रद्धय सद्गुरुणीजी श्री सोहनकुंवरजी रंग नीला है और साधु का रंग श्याम है / रंगों की महाराज क्षमा की साक्षात्मूर्ति थे। मैंने अनेकों बार अपनी दुनिया है। श्वेत रंग पवित्रता का प्रतीक है, देखा कि कैसा भी कटु से कटु प्रसंग आने पर भी रक्त रंग अप्रमत्तता का द्योतक है। यह रंग अतीउनका चेहरा गुलाब के फूल की तरह सदा खिला न्द्रियता की ओर ले जाता है। पीला रंग मन को रहता था / कटु बात का भी मधुर शब्दों में उत्तर सक्रिय बनाता है। नीला रंग शान्ति प्रदान करता है / त देती थीं। उनकी सहिष्णुता, नम्रता, सरलता का तथा श्याम रंग दृढ़ता का प्रतीक है / वह अवशोषक 10 जब भी स्मरण आता है तब मेरा हृदय श्रद्धा से है। इसीलिए श्वेत वस्त्रधारी श्रमणों का रंग श्याम नत हो जाता है। बताया है / क्योंकि वह कषाय के मित्रों को सदा के हमें जैनधर्म जैसा पवित्र धर्म मिला है इस धर्म लिए मिटाने के लिए उद्यत रहता है और इसीलिए का यही पावन सन्देश है कि हम कषाय को कम वह प्रबल पुरुषार्थ करता है। हम साधना के क्षेत्र में करें। कषाय भव भ्रमण का कारण है। संन्यासी तभी आगे बढ़ेंगे जब कषाय नष्ट होगा। 477 सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Ma( www.janeley.orgPage Navigation
1 2 3