Book Title: S Magge Ariehi Pavaiye
Author(s): Kalyanmal Lodha
Publisher: Z_Jayantsensuri_Abhinandan_Granth_012046.pdf

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Page 1
________________ एस मग्गे आरिएहि पवेइए (प्रो. श्री कल्याणमल लोढ़ा) आचार्य समन्तभद्र का कथन है - को अपना कर लोकमानस के सर्वाधिक निकट पहुँचे - उन्होंने देवागमनभोयान-चामरादिविभूतयः । भाषायी अहंकार को नष्ट किया और आचार धर्म को ही मुख्य गिना 1 समाज की आन्तरिक चेतना को नवीन जागति दी। उनका मायाविष्वपि दृश्यन्ते, नातस्त्वमसि नो महान् ।। धार्मिक प्रतिपादन और फल वर्तमान से सन्निविष्ट था - उन्होंने देवों का आना, गगन विहार, छत्र-चामर आदि विभूतियाँ बताया कि जिस क्षण धर्माचरण होता है उसी क्षण कर्म का भी ऐन्द्रजालिक व्यक्तियों को भी संभव है - आपके पास देवता आते. क्षय होता है । उमास्वाती ने इसी से कहा कि धर्म से उपलब्ध सुख थे, छत्र-चामर एवं यौगिक विभूतियों से सम्पन्न थे, इसलिए आप प्रत्यक्ष है। उनका कथन है - महान् नहीं - आपकी महानता यह है कि आपने सत्य को अनावृत निर्जितमदमदानां वाक्कायमनोविकासहितानाम् किया । सत्य को अनावृत करना. उसका परम रहस्य उदघाटित करना ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । वही दिव्य पथ का पाथेय है । विनिवृत्तपराशानामिहैव मोक्षः सुविहितानाम् । ऋषियों ने यही उद्घोष किया था - स-प्रशमरतिप्रकरण - २३८ । हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् अर्थात् जो व्यक्ति जाति, कुल, बल, रूप वैभव और ज्ञान-मद को तत्वंपूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये । ईशावास्योपनिषद् । ५। निरस्त करता है, काम-वासना पर विजय पाता है - विकृतियों से यह कौन सा सत्य है, जिसको पाने पर और समझने पर कुछ शेष रहित होता है - आकांक्षाओं से हीन होता - उसे इसी जन्म में उसी क्षण मोक्ष होता है । यह प्रत्यक्ष उपलब्धि मनुष्य को भविष्य से नहीं रहता | भगवान महावीर ने किस सत्य का संधान किया था । आचार्य हेमचन्द्र ने भी कहा - अधिक वर्तमान के प्रति आश्वस्त करती है । उसकी उपयोगिता जितनी आध्यात्मिक है, उतनी ही जागतिक भी । श्रेयस की साधना क्षिप्येत वान्यैः सदृशीक्रियेत वा ही धर्म है - यही है आत्म प्रकाश और चैतन्य का पूर्ण आलोक । तवांध्रपीठे लुठनं सुरेशितुः । भगवान ने बताया शाश्वत धर्म है - किसी भी प्राणी का अतिपात इदं यथावस्थित वस्तुदेशनम्, न करो उपद्रुत - न करो - परितृप्त न करो - अधीन मत करो । परैः कथं कारमपाकरिष्यते ।। महावीर का यह उपदेश, अहिंसा का यह उद्घोष आत्मोदय और लोकोदय दोनों दृष्टियों से मान्य है । आचार्य समन्तभद्र ने इसी से इन्द्र आपके पाद-पद्मों में लोटते थे, यह दार्शनिकों द्वारा खंडित हो जिन शासन को सर्वोदय कहा - सकता है - वे अपने इष्टदेव को भी इन्द्रजित कह सकते हैं, पर आपने जिस परम यथार्थ का निरूपण किया है वह तो सदैव सर्वान्तवद् तद् गुण-मुख्य कल्पं निर्विवाद है । प्रश्न उठता है वह यथार्थ क्या है ? जो शाश्वत है। सर्वान्तशून्यञ्च मिथोऽनपेक्षम् भगवान महावीर हमें बारबार स्मरण कराते हैं कि सत्य से युक्त सर्वापदामन्तकरं निरन्तं पुरुष धर्म को ग्रहण कर श्रेय समझता है - इसी से उनका आदेश सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव ।है : “हे पुरुष ! सत्य को अच्छी तरह जानो, सत्य की आराधना अब लोकोदय या सर्वोदय की व्यावहारिक दृष्टि से जैन धर्म को ही धर्म की आराधना है, क्योंकि सत्य में रत बुद्धिमान मनुष्य सब पाप-कर्मों का क्षय कर देता है उपयोगिता देखें | जैन धर्म आचार विचार को महत्व देता है, यही मानवीय नैतिकता की आधारशिला है | वैष्णव धर्म में जो महत्व का "सच्चं मि पेहावी कुव्वहा"-आचाराङ्ग । गीता का है, बौद्ध धर्म में धम्म पद का - वही महत्व जैन धर्म में इस पर विचार करने के पूर्व मैं स्पष्ट कर दूं कि वही धर्म - वही. उत्तराध्ययन का है, वह जैन धर्म की गीता है । जैनाचार्यों ने दर्शन - वही अध्यात्म सर्व स्वीकृत और देशकालातीत हो सकता आचार के भिन्न-भिन्न अर्थ किए हैं। है, जो व्यष्टि के साथ समष्टि के भी मंगल का आधार हो । जो आचार्य अभयदेव ने तीन अर्थ व्यक्ति के लिए भी परम मान्य हो पर साथ में हो लोकसिद्ध भी। आचरण, आसेवन और व्यवहरण जैन धर्म को प्रायः व्यक्तिनिष्ठ धर्म कहा जाता है - यह समीचीन किया है । स्थानाङ्ग (२/७२) में उसे नहीं । वह जितना व्यक्तिनिष्ठ है, उतना ही लोकनिष्ठ भी । यह श्रुतकर्म और चारित्र धर्म कहा है। ठीक है कि वीर प्रभु ने सामाजिक व्यवस्था का कोई विधान नहीं उमास्वाती आचार को सम्यग् दर्शन किया । सामाजिक परम्परा और अवधारणा को परिवर्तशील बताया सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चारित्र गिनते पर - जिन शाश्वत नैतिक मूल्यों की उन्होंने व्याख्या की वे व्यक्ति हैं। और समाज दोनों के लिए समानरूपेण हितकर हैं । वे लोक भाषा उत्तराध्ययन के अनुसार - यथार्थव को यह दाशी श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनन्दन ग्रंथ / विश्लेषण आशा तज कर अन्य की, एक आश अरिहन्त । जयन्तसेन करे सदा, जन्म मरण का अन्त ॥ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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