Book Title: Rogopachar me Gruha Shanti evam Dharmik Upayo ka Yogadana
Author(s): Gyanchandra Jain
Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf

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Page 5
________________ रोगोपचार में गृहशांति एवं धार्मिक उपायों का योगदान 309 सारणी 1 : ज्योतिष-चिकित्सीय प्रयोगों के परिणाम रोग रोगी संख्या कोई लाभ नहीं रोगोन्मूलन 4, 57% रोग-शमन 3, 42% 7, 875% 1, 125% 1, 100% 1. श्वास रोगी 2. यक्ष्मा 3. कुकुसावरण शोध 4. जन्नवह स्रोत 5. रसवह स्रोत 6. मूत्रवह स्रोत 7. पुरीधवह स्रोत 8. रक्तवह स्रोत 9. अतवह स्रोत 10. मनोवह स्रोत 11. वातवह स्रोत WW.K * 2/ साधारण जन की श्रद्धा और चिंतक की श्रद्धा में अंतर होता है / साधारणजन श्रद्धेय को प्रत्येक वाणी में श्रद्धा करता है। चितक श्रद्धेय की आध्यात्मिक उपलब्धि के प्रति श्रद्धानत होने पर भी उसके प्रत्येक वचन की श्रद्धा-स्वीकृति का आग्रह नहीं करता / सिद्धसेन ने बताया है कि भ० महावीर ने दो प्रकार के तत्व कहे-(१) हेतुगम्य और (2) अहेतुगम्य / जो व्यक्ति अहेतुगम्य तत्वों को आगम की प्रमाणता से और हेतुगम्य तत्वों को तर्क की प्रमाणता से प्रतिपादित करता है, वह आगम के हार्द को यथार्थ समझता है / नियुक्तिकार भद्रबाहु इसी मत के प्रस्तोता -मुनि नथमल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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