Book Title: Ratnakarandaka Shravakachar
Author(s): Vijay K Jain
Publisher: Vikalp Printers

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Page 7
________________ मंगल आशीर्वाद - परमपूज्य सिद्धान्तचक्रवर्ती श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानन्द जी मुनिराज उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निःप्रतिकारे। धर्माय तनुविमोचनमाहुः सल्लेखनामार्याः ॥१२२ ॥ - आचार्य समन्तभद्र, रत्नकरण्डकश्रावकाचार अर्थ - जब कोई निष्प्रतिकार उपसर्ग, दुर्भिक्ष, जरा, रोग आदि की स्थिति उत्पन्न हो जाए तब धर्मध्यान करते हुए शरीर का सहज त्याग कर देना सल्लेखना है, ऐसा गणधर कहते हैं।

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