Book Title: Rashtriya Jagaran
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ ११ राष्ट्रिय जागरण भारत की वर्तमान परिस्थितियों एवं समस्याओं पर जब हम विचार करते हैं, तो अतीत और भविष्य के चित्र बरबस मेरी कल्पना की आँखों के समक्ष उभर कर आ जाते हैं । इन चित्रों को वर्तमान के साथ सम्बद्ध किए बिना वर्तमान दर्शन नितान्त अधूरा रहेगा, भूत और भावी के फ्रेम में मढ़कर ही वर्तमान के चित्र को सम्पूर्ण रूप से देखा जा सकता है । स्वर्णिम चित्र : अध्ययन और अनुभव की आँख से जब हम प्राचीन भारत की ओर देखते हैं, तो एक गरिमा मण्डित स्वर्णिम चित्र हमारे समक्ष उपस्थित हो जाता है । उस चित्र की स्वर्ण रेखाएँ पुराणों और स्मृतियों के पटल पर अंकित हैं, रामायण और महाभारतकार की तूलिका से सँजोई हुई है । जैन आगमों और अन्य साहित्य में छविमान हैं । बौद्ध त्रिपिटकों में भी उसकी स्वर्णमभा यत्र-तत्र बिखरी हुई है। भारत के अतीत का वह गौरव सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, अपितु समग्र विश्व के लिए एक जीवन्त आदर्श था । अपने उज्ज्वल चरित्र और तेजस्वी चिन्तन से उसने एक दिन सम्पूर्ण संसार को प्रभावित किया था। उसी व्यापक प्रभाव का ब्रह्मनाद महर्षि मनु की वाणी से ध्वनित हुआ था- " एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्र - जन्मनः । स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः ॥” - मनुस्मृति २, २० "इस देश में जन्म लेने वाले चरित्र सम्पन्न विद्वानों से भूमण्डल के समस्त मानव अपनेअपने चरित्र कर्तव्य की शिक्षा ले सकते हैं ।” मनु की यह उक्ति कोई गर्वोक्ति नहीं, पितु उस युग की भारतीय स्थिति का एक यथार्थ चित्रण है, सही मूल्यांकन है । भारतीय जनता के निर्मल एवं उज्ज्वल चरित्र के प्रति श्रद्धावनत होकर यही बात पुराणकार महर्षि व्यासदेव ने इन शब्दों में दुहराई थी "गायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे । स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते, भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ॥” स्वर्ग के देवता भी स्वर्ग में भारत भूमि के गौरव -गीत गाते रहते हैं कि वे देव धन्य हैं, जो यहाँ से मरकर पुनः स्वर्ग और अपवर्ग- मोक्ष के मार्गस्वरूप पवित्र भारतभूमि में जन्म लेते हैं । Jain Education International - विष्णु पुराण, २।३।४. भगवान् महावीर के ये वचन कि- 'देवता भी भारत जैसे प्रार्य देश में जन्म लेने के लिए तरसते हैं' -- जब स्मृति में आते हैं, तो सोचता हूँ, ये जो बातें कही गई हैं, मात्र प्रालंकारिक नहीं हैं, कवि की कल्पनाजन्य उड़ानें नहीं हैं, बल्कि सत्य के साक्षात् दृष्टाओं की साक्षात् अनुभूति का स्पष्ट उद्घोष है । राष्ट्रिय जागरण For Private & Personal Use Only ४१५ www.jainelibrary.org.

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5