Book Title: Rashtrabhasha Shabdakosh
Author(s): Sahityaratna
Publisher: Vora and Company Publishers Limited

View full book text
Previous | Next

Page 217
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ ५२ 2 ५२ 14--घर का भेदी ले का ढावे २७ ५२॥ ३२॥ 40 पार पाभ्यायने मारी--घर का जोगी जोगना, श्रान गांव का सिद २८ परनी ना पनमा मत वनमा लागी माग--कमबख्ती अब अावे, ऊंट चढ़े को कुत्ता खावे २८ परनी भरवी हाण परामर--अपना मकान कोह समान ३. परमात सौ शुर--अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है ३१ । सेवा ra areी 'ताsी--खाने में क्या शर्माना ३२ ५ २४ --रफूचक्कर हो जाना 33 समाध तो शुनेय लास--डायन को भी दामाद प्यारा है ३४ या त्याRथा सवार--बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेय 34 d ते सानु --नई नौ दिन पुरानी सौ दिन . नो छ। शरम तेना टया ४२भ-नकटा जीये बुरा हवाल ३७ २ राम रामे तेने आय यामे--जाको राखे साइयां मार सके न कोय ३८ वी १२ वी १२--जैसी करनी वैसी भरनी वी तारी द्वारा मेवा भारे। तभुरी--जैसी तेरी तूमड़ी वैसा मेरा गीत ४० ने पाव ते सरी--बैमा पोवोगे वैसा काटोगे ४१ ते। वेश-जैसा देश वैसा मेष ४२ सयेटीपे सरो१२ सराय रे रे पाण धाय-बूंद बूंद से घड़ा भरता है ४३ तरत न २ महापू९५--तुरत दान महा कल्यान ४४ ते ॥ २ गाने ३---समझदार को इशारा ही काकी ४५ ४२शन मोशन म मोटा-ऊंची दुकात फीका पकवान ४६ दीदी ने सौपनी सारी --आम के आम गुठली के दाम ४७ म अरे आम सुधरे साम-दाम करावे काम ४८ isis अणुछ--दाल में कुछ काला है ४८ हिवामान ५५ आन होय छ--दीवार के भी कान होते हैं ५. ही पा मा३'-चिराग तो थेरा For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 215 216 217 218 219 220 221