Book Title: Rampyari ka Risala Author(s): Lakshmi Khundavat Publisher: Z_Bhanvarlal_Nahta_Abhinandan_Granth_012041.pdf View full book textPage 4
________________ कराये पर पानी फिरता है। वे स्वयं पधार कर चुंडावतों की। अहिल्याबाई ने अपनी सेना भेजी। सिन्धिया की को मना लावें। माँ बेटों को अगर मना कर लाती है सेना भी मार्ग में इससे मिल गई। मन्दसोर से शिवा तो कोई नई बात नहीं। _नाना भी इनके साथ हो गये। बाईजीराज झालीजी उसी समय पलाणा गाँव पहुँची। हड़क्याखाल पर मरहठों की सम्मिलित सेना के साथ चूंडावतों से जाकर रामप्यारी ने इस प्रकार कहा, 'आपके मुकाबला हुआ। बरछों और तलवारों से बड़ी जोरदार पीछे-पीछे आप लोगों की माँ आई हैं। कभी माँ नाराज लड़ाई हुई / मेवाड़ी सेना के कई वीर मारे गये / देलवाड़ा होती है तो बेटा माफी मांग लेता है। कभी बेटा नाराजी के राजरणा कल्याणसिंहजी झाला बड़ी वीरता से लड़े। होता है तो माँ मना लेती है। अब आपकी माँ आई उनका सारा शरीर घावों से भर गया। उस समय की है। आप लोग उनके पास चले और माँ-बेटे मिलकर घर उनकी वीरता के कई दोहे प्रसिद्ध हैं। उनमें से एक दोहा की बात करें / ' रामप्यारी से ऐसा सुनकर चूंडावत सरदार इस प्रकार है: बाईजीराज के पास उसी समय चले आये। रामप्यारी ने कहा, 'आप लोग दूसरों की बातों में कल्ला हमल्ला थां किया, पोह उगन्ते सूर / क्यों आते हैं ? यह गंगाजली लेकर एक दूसरे के मन का चढत हडक्या खाल पे, नरां चढायो नूर // बहम निकाल लें।' इसके बाद बाईजीराज ने गंगाजली लिखने योग्य विशेष बात यह है कि असल में प्रतिभा और श्रीनाथजी की तस्वीर सिर पर रखकर सौगन्ध खाई और योग्यता पर किसी जाति या वर्ग विशेष का ठेका कि उनके साथ किसी प्रकार धोखा नहीं होगा। इसी नहीं होता है। रामप्यारी एक साधारण दासी ही थी प्रकार चंडावत सरदारों ने भी गंगाजली उठाकर स्वामी- परन्तु उस समय उसने मेवाड की बिगडती हुई स्थिति को भक्त बने रहने की शपथ खाई।। बड़ी बुद्धिमत्ता एवं चतुराई से सम्भाला। मेवाड़ के शीघ्र ही मेवाड़ी सैनिकों ने जावर और नींबाहेड़ा के इतिहास के अन्य महत्वपूर्ण नामों के साथ-साथ रामप्यारी इलाकों से मरहठों को निकाल कर आक्रमण की तैयारी और उसके रिसाले का नाम भी अमर रहेगा। [ 67 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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