Book Title: Ramcharit Samabandhi Rajasthani Jain Sahitya Author(s): Agarchand Nahta Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 1
________________ SODW श्रीअगरचन्द नाहटा रामचरित सम्बन्धी राजस्थानी जैन साहित्य जैनागमों के अनुसार मर्यादापुरुषोत्तम राम आठवें बलदेव और लक्ष्मण आठवें वासुदेव हैं. रावण को प्रतिवासुदेव माना गया है. इन सब की वेसठ शलाका महापुरुषों में गणना होती है. समवायांग सूत्रादि में राम का नाम 'पउम' मिलता है. अत: रामचरित सम्बधी प्राचीन ग्रन्थों का नाम 'पउमचरिय' पद्मचरित व पद्मपुराण पाया जाता है. विमलसूरि रचित 'पउमचरिय' नामक प्राकृत चरितकाव्य सब से पहला ग्रंथ है जिसमें जैनदृष्टिकोण से राम-कथा का निरूपण किया गया है. प्राकृत में मौलिक चरितकाव्यों का प्रारम्भ इसी ग्रंथ से होता है. प्रस्तुत ग्रंथ में उल्लेखानुसार इस ग्रंथ की रचना दीर निर्वाण संवत् ५३० में हुई थी. अपभ्रंश भाषा के चरितकाव्य का प्रारम्भ भी रामकथा से ही होता है. कवि स्वयंभू का 'पउमचरिय' अपभ्रश का सर्वप्रथम विशिष्ट महाकाव्य है. स्वयंभू का समय आठवीं शताब्दी माना जाता है. उपर्युक्त दोनों प्राकृत व अपभ्रंश के रामकाव्य हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित हो चुके हैं. प्राकृत पउमचरियं के आधार से आचार्य रविषेण ने संस्कृत पद्मचरित नामक (वि०सं० १२०३) काव्य बनाया. वह भी प्रकाशित हो चुका है. अन्य भी कई रामचरित सम्बन्धी जैन ग्रंथ छपे हैं. अज्ञातकर्तृक 'सीताचरित' नामक प्राकृत काव्य अभी अप्रकाशित है 'चउपन्न महापुरुषचरियं' 'त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित' और 'महापुराण' में भी रामकथा गुंफित है. ये सभी छप चुके हैं. रामकथा के प्रधानतया दो रूपान्तर' जैन साहित्य में प्राप्त होते हैं. 'वसुदेवहिन्डी' नामक पांचवीं शताब्दी के कथाग्रंथ में भी रामकथा संक्षेप में प्राप्त होती है. इस प्रकार रामचरित सम्बन्धी जैन साहित्य प्रचुर परिणाम में प्राप्त है. प्रस्तुत लेख में राजस्थानी व हिन्दी की रामचरित सम्बन्धी जैन रचनाओं का ही संक्षिप्त विवरण प्रकाशित किया जा रहा है. राजस्थानी भाषा में रामचरित सम्बन्धी रचनाओं का प्रारम्भ १६ वीं शताब्दी से होने लगता है और २० वीं के लगभग ४०० वर्ष तक उसकी परंपरा निरंतर चलती रही है. उपलब्ध राजस्थानी भाषा के रामचरित गद्य और पद्य दोनों में प्राप्त हैं. इसी प्रकार जैन और जैनेतर भेद से भी इन्हें दो विभागों में बाँटा जा सकता है. इनमें जैन रचनाओं की प्राचीनता व प्रधानता विशेष रूप से उल्लेखनीय है अतः प्रस्तुत लेख में राजस्थानी की रामकथा सम्बन्धी रचनाओं का ही विवरण दिया जाता है. रामचरित सम्बन्धी राजस्थानी जैन रचनाओं में से कुछ तो सीता के चरित को प्रधानता देती हैं, कुछ रामचरित को. १. देखो नाथूराम प्रेमी लि० पउमचरियं लेख. NMMERCE 20 AA Jain Education inPage Navigation
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