Book Title: Rajprashniya Sutra Author(s): Sundarlal Jain Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 7
________________ राजप्रश्नीय सूब 259 मुनि-- नवीन छीका जितना वजन सह सकता है उतना पुराना नहीं। यही बात जवान और बूढ़े के बोझ उठाने के संबंध में समझना चाहिए। राजा- मैंने एक जीवित चोर को तुलवाया, फिर उसके गले में फांसी लगाकर उसके मर जाने पर तुलवाया, लेकिन उसका वजन पहले जितना ही था। यदि जीव और शरीर भिन्न-भिन्न हैं तो जीव के निकलने पर वजन घटना था। मुनि-- चमड़े की मशक में पहले हवा भर कर तौला जाय तथा फिर हवा निकालकर नोला जाय, दोनों बार तोल बराबर होता है। यही बात जीव के संबंध में समझना चाहिए। राजा- मैंने एक चोर के टुकड़े-टुकड़े करके देखा तो कहीं भी जीव दिखाई नहीं दिया। फिर शरीर में जीव कहाँ रहता है? मुनि- राजन् ! तुम उस लकड़हारे के समान मालूम होते हो जो अरणि की लकड़ी में आग खोजने के लिए उस अरणि की लकड़ी के टुकड़े-टुकड़े कर देता है, लेकिन कहीं भी आग नहीं दिखाई देती है, वह नहीं जानता कि जब उस अरणि की दो लकड़ियों को परस्पर रगड़ा जाता है तो आग प्रकट होती है। राजा- मुनिराज मेरी समझ में कुछ नहीं आता है। कोई प्रत्यक्ष उदाहरण देकर समझाइए कि शरीर भिन्न है, जीव भिन्न है। मुनि- ठीक, सामने खड़े वृक्ष के पने किसकी प्रेरणा से हिल रहे हैं? राजा- हवा से। मुनि- वह हवा कितनी बड़ी है व उसका रंग कैसा है? राजा- हवा दिखाई नहीं देती है अत: आपके प्रश्न का उत्तर कैसे दिया जा सकता है? मुनि- जब हवा दिखाई नहीं देतो तो कैसे जाना कि हवा है? राजा- पत्तों के हिलने से। मुनि- तो उसी प्रकार शरीर के हिलने डुलने आदि क्रियाओं से जीव का अस्तित्व सिद्ध होता है। राजा- मुनिराज! आप कहते हैं कि सब जीव सरीखे हैं तो चींटी छोटी और हाथी बड़ा कैसे हो सकता है? मुनि- जैसे किसी दीपक को कटोरे से ढक दिया जाता है तो वह कटोरे जितनी जगह में प्रकाश करेगा और जब उसी दीपक को महल में रख दिया जाय तो महल के क्षेत्र को प्रकाशित करेगा, उसी प्रकार जीव छोटे या बड़े जिस किसी शरीर में रहता है वैसा ही आकार प्राप्त कर लेता है। राजा- मुनिवर! आपका कथन सत्य है लेकिन मैं वंशानुक्रम से चले आ रहे अपने आग्रह को कैसे छोड़ दूं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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