Book Title: Rajasthani Jain Sahitya ki Rup Parampara
Author(s): Manmohanswawrup Mathur
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 4
________________ राजस्थानी जैन साहित्य की रूप-परम्परा रक्षित रास ( कनक सोम) १ तेजसार रास, अगड़दत्त रास ( कुशललाभ ) २, अंजनासुन्दरीरास ( उपाध्याय गुण - विनय ) " । (२) चौपाई (चउपाई, पपई) रासी विधा के पश्चात् जैन साहित्य में सर्वाधिक रचनाएँ चोपाई नाम से मिलती है । यह नाम छन्द के आधार पर है। चौपाई सममात्रिक छन्द है, जिसके प्रत्येक चरण में पन्द्रह एवं सोलह मात्राएँ होती हैं । १७वीं शताब्दी तक रासौ और चौपाई परस्पर पर्याय रूप में प्रयुक्त होने लगे कुछ उल्लेखनीय चौपाई काव्य निम्नलिखित है— पंचदण्ड चौपाई (१५५६ अज्ञात कवि), पुरन्दर चौपई (मालदेव) * चंदन राजा मलयागिरी चौपाई (हीरविशाल के शिष्य द्वारा रचित ) चंदनबाला चरित चौपाई (देपाल), मृगावती चौपाई (विनयसमुद्र) 5. अमरसेन चयरसेन चौपाई ( राजनीस) माधवानल कामकंदला चौपाई, ढोला माखणी चौपाई, भीमसेन हंसराज चौपाई ११, (कुशललाभ), देवदत्त चौपाई (मालदेव) १२ आषाढ़भूति चौपाई ( कनकसोम ) ३, गोराबादल पद्मिनी चौपाई (हेमन्त सूरि ) १४, गुणसुन्दरी चौपई (गुणविनय ) । १५. १७ (३) सन्धि-काव्य - अपभ्रंश महाकाव्यों के अर्थ में संधि शब्द का प्रयोग होता था । महाकाव्य के लक्षण ब हुए हेमचन्द्र ने कहा है कि संस्कृत महाकाव्य सर्गों में, प्राकृत आश्वासों में अपभ्रंश संधियों में एवं ग्राम स्कन्धों में निबद्ध होता है । १६ भाषा-काव्य ( राजस्थानी ) में संधि नाम की रचनाएँ १४वीं शताब्दी से मिलने लगती हैं । कतिपय संधि काव्य इस प्रकार हैं- आनंद संधि (विनयचंद), केशी गौतम संधि * ( कल्याणतिलक), नंदनमणिहार संधि ( चारुचंद्र ), उदाहरणर्षि संधि, राजकुमार संधि ( संयममूर्ति), सुबाहु संधि ( पुण्यसागर), जिनपालित जिनरक्षित संधि, हरिकेशी संधि ( कनकसोम), चउसरण प्रकीर्णक संधि ( चारित्रसिंह), भावना संधि ( जयसोम) अनाथी संधि (विमल - विनय, कला संधि (गुणविनय ४. जैन गुर्जर कविओ, भाग १, पृ० ६६ ५. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ० १०-१०० ६. कल्पना - दिसम्बर १६५७, पृ० ८१ (४) प्रबन्ध, चरित, सम्बन्ध, आख्यान, कथा, प्रकाश, विलास, गाथा इत्यादि -- ये सभी नाम प्राय: एक दूसरे के पर्याय हैं । जो ग्रन्थ जिसके सम्बन्ध में लिखा गया है, उसे उसके नाम सहित उपर्युक्त संज्ञाएँ दी जाती हैं । ७. जैन गुर्जर कविओ, भाग १, पृ० ३७ ८. राजस्थानी भारती भाग ५ अंक १ जनवरी १९५६ " १. युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि पृ० १९४-९५ २. मनमनोहनस्वरूप माथुर कुशललाभ और उनका साहित्य (राजस्थान विश्वविद्यालय से स्वीकृत शोध प्रबन्ध) ३. शोध पत्रिका, भाग ८, अंक २-३, १६५६ ई० ६. जैन गुर्जर कविओ, भाग ३, पृ० ५३६ १०. सं०] मोहनलाल दलीचंद देसाई आनन्द काव्य महोदधि, मी० ७ ५१६ ११. एल० डी० इंस्टीट्यूट, अहमदाबाद, हस्तलिखित ग्रंथ १२. राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज, भाग २ +++ १३. युगप्रधान श्री जिनचंद्र सूरि पृ० १६४-६५ १४. कल्पना, वर्ष १, अंक १, १९४९ ई० ( हिन्दी और मराठी साहित्य प्रकाशन - माचवे ) १५. शोधपत्रिका, भाग ८, अंक २-३, १६५६ ई० १६. डॉ० हीरालाल माहेश्वरी - राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ० २३७ १७. जैन गुर्जर कविओ, भाग १, पृ० ३७ १०. डॉ० हीरालाल माहेश्वरी– राजस्थानी भाषा और साहित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only १० www.jainelibrary.org.

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