Book Title: Rajasthan Jain Chitrakal kuch Aprakashit Sakshya
Author(s): Brajmohansinh Parmar
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 3
________________ राजस्थान जैन चित्रकला : कुछ अप्रकाशित साक्ष्य -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-... .... . .... ने कहीं-कही कागज को खा लिया है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि कालिख में सम्भवतः कसीस मिलाई गई होगी। इसी प्रकार मुंगिया, हरा रंग (सीलू) कई स्थानों पर कागज को खा गया है, यह खनिज रंग है जिसकी प्राप्ति कहाँ से हुई ? कहना कठिन है। यशोधरचरित सवाईमाधोपुर स्थित दीवानजी के मन्दिर में जैन तीर्थकरों की लगभग 450 पाषाण एवं कास्य प्रतिमाएं सुरक्षित हैं, परन्तु इनमें से अधिकांश प्रतिमाएँ विक्रम संवत् 1826 की हैं। जैन पुरातत्त्व विषयक इससे पूर्व का एक 'यशोधरचरित' नामक चित्रित ग्रन्थ है, जो जयपुर के निकट सांगानेर कस्बे में वि० सं० 1766 में चित्रित हुआ था, जैसा कि इसके निम्नलिखित प्रशस्ति पत्र से स्पष्ट है इति यशोधरचरित्रे भट्टारक श्री सकलकोति विरचिते / अभयरुचित भट्टारक स्वर्गगमन वर्णनोनामा अष्टम सर्गः सम्पूर्ण // मिति संवत्सरे रंध्ररसमुनीन्द्र मिति 1766 माघमासे शुक्लपक्षे पंचमी तिथि रेवती नक्षत्र संग्रामपुर नगरे श्री नेमिनाथ चैत्यालये श्री मूलसंघे नंद्याम्नाय बलात्कारगण सरस्वती मच्छे..."। यशोधरचरित की इस चित्रित पाण्डुलिपि में 56 पृष्ठ हैं जो आकार में लगभग 12'46" के होंगे और 36 चित्र हैं, जिनमें से कुछ पूरे पृष्ठ पर और कुछ आधे पृष्ठों पर चित्रित हैं / रेखाकर्म व रंग योजना की दृष्टि से इसके चित्र सन् 1706 ई०१ के आमेर वाली रागमाला के चित्रों से निकट की समानता रखते हैं / इससे पूर्व की एक और यशोधरचरित्र की प्रति आमेर में सन् 1560 ई० में चित्रित हुई थी, सरयू दोशी के अध्ययन के आधार पर इस प्रति के चित्रों पर पश्चिमी भारतीय कला शैली का प्रभाव स्पष्ट है। 000 1. ललित कला, अंक 15 (श्रीधर आं), पृ० 47-51 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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