Book Title: Pushpmala Chintvani Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ जून २००९ ५७ जूई । पान । पोईण | केसु गुलाब | मोगरो | केतकी | धतूरो पाईण | केसु । कंद सुदरसणो | सदावतंस| सेवत्री । सिरपंडी हारसिणगार केवडो | तडतडी | सहकार करीर कमल | कमोदनी | कंद सुदरसण सुरजनो | अंवकेस | केवडो | तडतडी आफु | बोलसरी | सहकार | करीर | केसु जूई । पान | पोईण कमल | कमोदनी | कंद सुदरसण सुरजनो | अंवकेस | केवडो | तडतडी आफु | बोलसरी | सहकार | करीर (पुष्पमाला चिंतवणी) जेहने उपमा देत है कवि कामिनीने अंग । अदभूत सरस सुगंधता चंपा फूल सुरंग ॥१॥ ज्यु निरमल कुल कामनी शीलसुगंधसुवास । पुजे तिम बहु पाईये फूल गुलाब सुवास ॥२।। सज्जनकेरी प्रीतडी दिन दिन अधकी थाय । मोगर केरा फूल जिम परिमल कह्यो न जाय ॥३॥ तीलसरीसा गुण पलकमै दाणे जेह अमूल । ते सजन कीम वीसरै जिम चंवेली फूल ॥४॥ कदली गरम सकोमली जेहनी अदभूत देह । ते सज्जन सषी संभरें जिम बप्पीआ मेह ॥५॥ सुंदररूप सुरंगपणि जेह सकंटक होय । ते दूरि सषी परिहरी केतकी ईसर जोय ॥६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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