Book Title: Pushpachulika aur Vrushnidasha
Author(s): Hemprabhashreeji
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 2
________________ 316 जिनवाणी- जैनागम साहित्य विशेषाङ्क आगमों को चार भागों में वर्गीकृत किया, जो अनुयोग कहलाते हैं। वे इस प्रकार हैं 1. चरण करणानुयोग-संयम की आराधना में सहयोगी / उपयोगी तत्त्वों का इस अनुयोग में विवेचन है। 2. धर्मकथानुयोग - इसमें कथानकों या आख्यानकों के माध्यम से धर्म के अंगों का विवेचन किया गया है। 3. गणितानुयोग - विभिन्न ज्योतिष ग्रहों का विवेचन इसमें है । 4. द्रव्यानुयोग - षट् द्रव्यों का विश्लेषण इस अनुयोग में है। पुष्पचूलिका एवं वृष्णिदशा की गणना धर्मकथानुयोग में की गई है। इनमें कथाओं के माध्यम से तत्कालीन तद्युगीन महान् चारित्रात्माओं के जीवन प्रसंग पर प्रकाश डाला गया है। दोनों उपांग आगमों का संक्षिप्त सार रूप आगे दिया जा रहा है पुष्पचूलिका ऐतिहासिक दृष्टि से इस आगम का अत्यधिक महत्त्व है। इसके दस अध्ययन हैं। उनमें भगवान पार्श्वनाथ के शासन में दीक्षित होने वाली दस श्रमणियों की चर्चा कथा रूप में की गई है तथा इन कथाओं का प्रेरणातत्त्व शुद्ध श्रमणाचार है । भगवान महावीर के उत्तराधिकारी आर्य सुधर्मा थे। आर्य सुधर्मा के प्रमुख शिष्य जम्बू थे। वे जिज्ञासु भाव से, लोकोपकार की वृत्ति से आर्य सुधर्मा से प्रश्न करते हैं। आर्य सुधर्मा शिष्य जम्बू की जिज्ञासा के अनुसार मोक्षप्राप्त भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित पुष्पचूलिका के दस अध्ययनों का कथानक शैली में वर्णन करते हैं। आख्यानक या कथा के माध्यम से आर्य सुधर्मा ने प्रतिपाद्य विषय को जन-जन के लिए बोधगम्य बना दिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिज्ञासु और समाधाता के माध्यम से जिज्ञास्य विषय मानो साक्षात् उपस्थित हो गया है। पुष्पचूलिका के प्रथम अध्ययन में वर्णित कथा का सारांश इस प्रकार है - एक बार राजगृह नगर के गुणशीलक चैन्य में श्रमण भगवान महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ। दर्शन, वंदन, धर्मश्रवणके लिए परिषद् आई। उसी समय सौधर्मकल्प नामक प्रथम देवलोक से श्रीदेवी भी भक्तिवश प्रभु के दर्शनार्थ पहुँची। भगवान की धर्मदेशना की समाप्ति के पश्चात् श्रीदेवी दिव्य नाट्य विधि को प्रदर्शित कर वापिस स्वस्थान चली गई। उसके लौट जाने के पश्चात् गौतम स्वामी द्वारा उसकी ऋद्धि-समृद्धि संबंधी की गई जिज्ञासा पर भगवान महावीर ने कहा- गौतम! पूर्वभव में यह राजगृह नगर के धनाढ्य सुदर्शन गाथापति की 'भूता' नाम की पुत्री थी। वह युवावस्था में ही वृद्धा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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