Book Title: Pratikraman ka Pahla Charan Atmnirikshan Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf View full book textPage 1
________________ प्रतिक्रमण का पहला चरण : आत्मनिरीक्षण आचार्य श्री महाप्रज्ञ 15.17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 47 व्रत जीवन को मर्यादित एवं संयमित बनाते हैं । व्रतविहीन व्यक्ति के मन में दोष शीघ्र प्रवेश कर जाते हैं । व्रतों के पालन में भी कहीं कोई छिद्र रह सकता है। अतः उसके निवारण हेतु प्रतिक्रमण आवश्यक है । प्रतिक्रमण का पहला चरण है- आत्मनिरीक्षण | आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने प्रस्तुत आलेख में आत्मनिरीक्षण का महत्त्व स्थापित किया है । -सम्पादक आध्यात्मिक भूमिका पर व्यक्ति आत्मिक विकास के लिए नियमों में रहता है अर्थात् वह बिना व्रत ग्रहण किए नहीं रहता, खुला नहीं रहता। क्योंकि खुले रहने में असुरक्षा है। आध्यात्मिक क्षेत्र में ही नहीं संसार में भी खुली वस्तुएँ असुरक्षित हैं। जैसे- दूध का पात्र खुला पड़ा है तो भीतर मक्खी पड़ने की संभावना रहती है। इसीलिए उस पर ढक्कन दे देते हैं। घर की छत को कोई खुला नहीं रखता। प्रत्येक घर की छत बन्द होती है, इसलिए कि धूप से बचाव हो सके, सर्दी-गर्मी से बचाव हो सके, आँधी और वर्षा से बचाव हो सके । प्रत्येक घर में दरवाजे लगे हुए हैं, इसलिए कि हर कोई उसमें न घुस जाए। वांछित आए, किन्तु अवांछित न आए। प्रत्येक व्यक्ति ने हर दृष्टि से सुरक्षा की व्यवस्था कर रखी है। आध्यात्मिक व्यक्ति भी सुरक्षा की व्यवस्था रखता है । भौतिकवाद: अध्यात्मवाद आज की दुनिया दो वादों में बँटी हुई है - भौतिकवाद और अध्यात्मवाद | दार्शनिक भाषा को छोड़ दें, केवल अध्यात्मशास्त्रीय भाषा में बात करें तो कहा जा सकता है जो व्यक्ति सर्वथा खुला है, मानना चाहिए कि वह पदार्थवादी आदमी है। जिस व्यक्ति ने अपनी खुलावट पर कोई ढक्कन रख छोड़ा है, छत बनाई है, किवाड़ लगाए हैं, उसका नाम है अध्यात्मवादी । अध्यात्मवादी बिल्कुल खुला नहीं रहता, कहीं न कहीं आवरण जरूर रखता है। इसलिए रखता है कि यह जगत् अनेक मलिनताओं का घर है। राग और द्वेष की मलिनता का निरंतर विकिरण हो रहा है । संक्रामक है दुनिया आजकल अणुधूलि का विकिरण बहुत हो रहा है। केवल उन राष्ट्रों में ही नहीं, जिन्होंने अणु विस्फोट किये हैं, किन्तु उनमें भी अणु-विकिरण हो रहा है, जहाँ अणु-परीक्षण नहीं हुए हैं। इसीलिए आज कहा जाता है कि दूध को बिना उबाले न पिया जाए। पहले यह कहा जाता था कि दूध को बिना उबाले पिया जाए। आज तो पानी भी बिना उबाले पीने लायक नहीं रह गया है। कहा जा रहा है कि सचित्त का त्याग हो या न हो, उबला हुआ पानी ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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