Book Title: Pratikraman aur Swasthya
Author(s): Chanchalmal Choradiya
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

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Page 1
________________ 15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 258 प्रतिक्रमण और स्वास्थ्य श्री चंचलमल चोरडिया आत्मशुद्धि हेतु किया गया प्रतिक्रमण स्वतः ही मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति करा देता है। दूसरी तरफ बिना मानसिक संतुलन या स्वस्थता के भावपूर्वक प्रतिक्रमण करना भी संभव नहीं है ! प्रतिक्रमण केवल आत्मा से ही जुड़ा हुआ नहीं है, इसका सीधा प्रभाव मन व शरीर के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। इस दृष्टिकोण से लेखक ने यहाँ छहों आवश्यकों का सुन्दर विवेचन किया है। -सम्पादक प्रतिक्रमण क्या है? प्रतिक्रमण स्वयं द्वारा स्वयं के दोषों का निरीक्षण, परीक्षण और समीक्षा की व्यवस्थित प्रक्रिया है। गलती होना मानव का स्वभाव है। उसको स्वीकारना मानवता है। प्रतिक्रमण गलती को गलती मानने, जानने और छोड़ने का पुरुषार्थ है। गलती को गलती मानने से भविष्य में पुनः गलतियाँ होने की संभावनाएँ कम रहती हैं। गलती को गलती न मानने वाला अन्दर ही अन्दर भयभीत, तनावग्रस्त एवं दुःखी रहता है। क्रोध एवं चिड़चिड़ेपन से लीवर और गालब्रेडर, भय से गुर्दे एवं मूत्राशय, तनाव एवं चिन्ता से तिल्ली, पेंक्रियाज और आमाशय तथा अधीरता एवं आवेग से हृदय एवं छोटी आँत तथा दुःख से फेंफड़े एवं बड़ी आंत की क्षमता घटती है। स्वस्थ कौन एवं स्वास्थ्य क्या? स्वस्थ का अर्थ होता है स्व में स्थित होना अर्थात् स्वयं पर स्वयं का नियंत्रण। स्वास्थ्य का अर्थ है रोगमुक्त जीवन । स्वास्थ्य तन, मन और आत्मोत्साह के समन्वय का नाम है अर्थात् शरीर, मन और आत्मा तीनों जब ताल से ताल मिलाकर कार्य करें, शरीर की सारी प्रणालियाँ एवं सभी अवयव सामान्य रूप से स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करें, किसी के कार्य में कोई अवरोध न हो और उसको चलाने में किसी बाह्य वस्तु की आवश्यकता भी न पड़े तब व्यक्ति स्वस्थ होता है।। मन, वचन और काया आत्मा की अभिव्यक्ति के तीन सशक्त माध्यम है । आत्मा ही जीवन का आधार होती है । आत्मा की अनुपस्थिति में शरीर, मन और मस्तिष्क का कोई अस्तित्व नहीं होता और न स्वास्थ्य की कोई समस्या होती है । आत्मा के विकार ही रोग के प्रमुख कारण होते हैं। आत्मा के विकार मुक्त होने से शरीर, मन, वाणी और मस्तिष्क स्वतः स्वस्थ होने लगते हैं। इस दुनियाँ में इतने कष्ट नहीं हैं जितने आदमी भोगता है। वह भोगता है अपने अज्ञान के कारण! ज्ञानी के लिये शरीर में समाधान है, प्रकृति में समाधान है, वातावरण में समाधान है, वनस्पति जगत् में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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