Book Title: Pranayam Ek Chintan
Author(s): Pushpavati
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

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________________ प्राणायाम : एक चिन्तन ८१ . प्राणायाम : एक चिन्तन महासती पुष्पावती __ साहित्यरत्न हठयोग में प्राणायाम एक महत्त्वपूर्ण अंग है । पतंजलि के स्वरचित योगसूत्रान्तर्गत अष्टांगयोग में आसनों के लिए तीन और प्राणायाम के लिए चार सूत्र प्राप्त होते हैं। लेकिन आसन और प्राणायाम सम्बन्धी विस्तृत विश्लेषणात्मक विवेचन हठयोग के ग्रन्थों में ही अधिक प्राप्त होता है। पतंजलि ने जिस दार्शनिक भूमि को प्रस्तावित करने का प्रयत्न किया है, उसमें प्राणायाम जैसे अंगों को एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है । परन्तु इस लघु-काय निबन्ध में पतंजलि के सूत्रों का विवेचन करना हमारा उद्देश्य नहीं है। यहाँ पर, हम हठयोग-साहित्य और जैन साधना साहित्य के आधार पर प्राणायाम सम्बन्धी कुछ विचार प्रस्तुत कर रहे हैं। साधना-मार्ग में शरीर पर नियन्त्रण रखना आवश्यक है; और इस नियन्त्रण के लिए प्राणायाम एक महत्त्वपूर्ण साधन है। इसीलिए प्रायः सभी साधना सम्प्रदायों में प्रमुख रूप से प्राणायाम सम्बन्धी उल्लेख-कुछ भेद के साथ प्राप्त होते हैं । हमें उपनिषदों में प्राण सम्बन्धी अनेक रूपों का उल्लेख प्राप्त होता है। जैसे प्राण-जप, प्राणधारणा, प्राण-रोध, प्राण-स्पन्दः, प्राणादिवायव: आदि । विशिखी ब्राह्मण उपनिषद् में दस प्राणों का उल्लेख है। कुछ इसी तरह का उल्लेख हमें ध्यानबिन्दु उपनिषद् और ब्रह्मविद्या उपनिषद में भी मिलता है। इन उपनिषदों में विस्तार के साथ इन प्राणों के स्थान और कार्य का वर्णन किया गया है। प्राणजप या संयम आदि द्वारा कुण्डलिनी से सम्बन्ध जोड़ा गया है। षट्चक्र मण्डल में ज्ञानदीप प्रज्ज्वलित हो जाते हैं। इसी प्रकार अन्य अनेक अनूठे अनुभव बताने का प्रयत्न किया गया है। पतंजलि के 'प्रकाश-आवरण-क्षय' का भी अर्थ सम्भवतः कुछ इसी प्रकार से होता है। यद्यपि इन शब्दों का आधुनिक विश्लेषणात्मक भाषा-शैली से अर्थ लगाना बहुत कठिन है, फिर भी यह निश्चित है कि प्राचीन आचार्यों के सम्मुख, इन शब्दों के कुछ न कुछ अर्थ निश्चित रहे होंगे । आसन और प्राणायाम के वर्णन के बाद, शरीर पर होने वाले इनके परिणामों का वर्णन, इस बात की ओर संकेत करता है कि प्राचीन आचार्य, तत्त्वचिन्तन करने के साथ-साथ व्यावहारिक अनुभूतियाँ भी प्राप्त करते होंगे। इन अनुभूतियों की भाषा कुछ अगम्य सी प्रतीत होती है-जो आज के चिन्तकों और साधकों से स्पष्टीकरण की अपेक्षा रखती है। हठयोग में प्राण के सम्बन्ध में कहा गया है कि जब तक प्राण चल रहे हैं तभी तक शरीर जीवित रहता है। प्राण के साथ ही शरीर का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। प्राणायाम के 'युक्त' अभ्यास से सर्वरोगों से मुक्ति मिल जाती है और प्राणायाम के 'अयुक्त अभ्यास से बहुत सारे रोग उत्पन्न भी हो जाते हैं। प्राणायाम के सन्दर्भ में 'युक्त' और 'अयुक्त' अभ्यास और 'शोधन-क्रिया' का अपना विशिष्ट महत्व है। हम यहाँ 'युक्त' और 'अयुक्त' अभ्यास पर ही विवेचन करने का प्रयत्न करेंगे। प्राणायाम से जिस प्रकार शरीर शान्त होता है उसी प्रकार मन भी निराश्रय होता है। इसी निराश्रय अवस्था का विस्तार करना, सम्भवतः प्राणायाम का हेतु रहा होगा । यहाँ यह स्मरण रखना होगा कि प्राणायाम अपने आप में कोई साध्य नहीं है अपितु साधना-मार्ग का एक सोपान है। अतः यह साधकों के लिए आवश्यक तो है किन्तु अनिवार्य नहीं। अध्यात्म-साधना के विभिन्न मार्गों में से यह भी एक मार्ग है; और साधक की अवस्थानुसार आसन तथा प्राणायामों का उपयोग व स्वरूप बदला जा सकता है और बदलना भी चाहिये। - हठयोग में इसका वर्णन शारीरिक आरोग्यता के सन्दर्भ में भी किया गया है। प्राणायाम करने से मन प्रसन्न होगा और शरीर में किसी प्रकार के दोष नहीं रहेंगे। प्राणायाम के इस विवेचन को लेकर ही आधुनिक शरीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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