Book Title: Prakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 9
________________ आवश्यक व्यतिरिक्त कालिक उत्कालिक उत्तराध्ययन समुत्थानश्रुत दशवैकालिक विहारकल्प दशाश्रुतस्कन्ध नागपरितापनिका कल्पिकाकल्पिक चरणविधि काल्प निरयावलिका चुल्लकल्पश्रुत आतुरप्रत्याख्यान निशीथ कल्पिका औपपातिक महाप्रत्याख्यान महानिशीथ कल्पावतंसिका राजप्रश्नीय ऋषिभाषित पुष्पिका जीवाभिगम जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति पुष्पचूलिका प्रज्ञापना द्वीपसागरप्रज्ञप्ति वृष्णिदशा महाप्रज्ञापना चन्द्रप्रज्ञप्ति प्रमादाप्रमाद क्षुल्लिकाविमान प्रविभक्ति नन्दी अनुयोगद्वार महल्लिकाविमान प्रविभक्ति देवेन्द्रस्तव तंदुलवैचारिक अंगचूलिका चन्द्रवेध्यक वंगचूलिका सूर्यप्रज्ञप्ति विवाहचूलिका पौरुषीमंडल अरुणोपपात मण्डलप्रवेश वरुणोपपात गणिविद्या गरुडोपपात ध्यानविभक्ति धरणोपपात मरणविभक्ति वैश्रवणोपपात आत्मविभक्ति वेलन्धरोपपात वीतरागश्रुत देवेन्द्रोपपात संलेखणाश्रुत इस प्रकार हम देखते हैं कि नन्दीसूत्र में देवेन्द्रस्तव का उल्लेख अंगबाह्य, आवश्यक व्यतिरिक्त उत्कालिक आगमों में हुआ है पाक्षिक सूत्र में भी आगमों के वर्गीकरण की यही शैली अपनायी गई है। इसके अतिरिक्त आगमों के वर्गीकरण की एकप्राचीनशैली हमें यापनीय परंपरा केशोरसेनीआगम मूलाचार' में भी मिलती है।

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