Book Title: Prakrit Apbhramsa Pado ka Mulyankan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf

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Page 5
________________ प्राकृत अपभ्रंश पद्यों का काव्यमूल्यांकन ६७ तुम उसे अवश्य पहिचान लोगे । वास्तव में मेरी प्रिया के घुंघराले केश मयूरों के केशपाशों से भी सुन्दर हैं।' हाथ जोड़कर पुरुरवा मयूरों से अनुनय करता है : बहिण पइँ इअ अभत्थिअमि आ अक्खहि मं ता, त्थव भम्मंते जइ पई दिट्ठी सा महू कंता । सिमाहि मिअंक सरिसवअणा हंसगई, ए चिन्हे जाणीहिसि आअक्खिउ तुज्झ मइँ ॥ - ४२० राजा की विरहावस्था की पुष्टि नेपथ्य से होती है । नेपथ्य में प्रतीक रूप में पुरुरवा को गज कहा गया है और उसकी समस्त क्रियाओं एवं मनोभावों को नेपथ्य द्वारा अभिव्यक्त किया गया है। जिन पद्यों को कवि ने उपस्थित किया है वे वस्तुतः दृश्यकाव्य के मर्म द्योतक हैं। भले ही कतिपय आलोचक उन्हें प्रक्षिप्त कहें पर उनके बिना राजा की व्यथा की अभिव्यक्ति होती ही नहीं । अतएव यह महाकवि कालिदास की ही सूझ है कि जिसने पुरुरवा के विरह शोक को उन्मत्त गज के रूपक द्वारा प्रस्तुत किया है। परहुअ महरपलाविणि कंती णंदणवण सच्छंद भमंती | जप पिअअम सा महु दिट्टी ता आ अक्खहि महु परपुट्ठी ॥ - ४२४ उक्त पद्य में पुरुरवा अपनी प्रियतमा का पता कूजती हुई कोकिल से पूछता है । पुरुरवा हंस को देखकर समझता हैं कि इसने मंद मंदिर चाल मेरी प्रियतमा से ही सीखी है अतः इसने अवश्य ही मेरी प्रियतमा को देखा होगा | अतएव वह हंस के समक्ष अपनी हार्दिक वेदना को उपस्थित करते हुए कहता है -- रे रे हंसा कि गोइज्जइ गइ अणुसारें महँ लक्खिज्जइ । कई पई सिक्ख ए गई लालसा सा पइँ दिट्ठी जहण मरालसा ॥ - ४३२ इस प्रकार महाकवि कालिदास ने पुरुरवा द्वारा चक्रवाक, गज, पर्वत, समुद्र आदि से अपनी प्रिया का पता पुछवाया है । महाकवि ने पुरुरवा की इस हार्दिक वेदना को प्राकृत पद्यों में व्यक्त किया है । ऐसा प्रतीत होता है कि जिन भावनाओं को कवि संस्कृत में अभिव्यक्त करने में कठिनाई का अनुभव करता है उन भावों को उसने प्राकृत-पद्यों में अभिव्यक्त किया है । यहाँ हम उदाहरणार्थ एक-दो पद्य ही उद्धृत करना उचित समझते हैं । पुरुरवा पर्वत से पूछता हुआ कहता है : फलिह सिलाहअ णिम्मलणिज्झरू बहुविह कुसुमें विरइअसेहरु । fare महुरुग्गीअ मणोहरु देवखावहि महु पिअअम महिहरु ।। - ४१५० स्फटिक की चट्टानों पर बहते हुए उजले झरनों वाले रंग-विरंगे फूलों से अपनी चोटियाँ सजाने वाले, किन्नरों के जोड़ों मे मधुर गीतों से सुहावने लगने वाले हे पर्वत, मेरी प्यारी की एक झलक तो मुझे दिखा दो । Jain Education International इस प्रकार पुरुरवा मयूर, कोकिल, हस, चकवा, भ्रमर, हाथी, पर्वत नदी, हिरण (४/७१ ) प्रभृति से अपनी प्रिया का पता पूछ-पूछकर सन्तोष प्राप्त करता है। महाकवि ने इन सभी मर्मस्थलों को प्राकृत पद्यों में ही निबद्ध किया है। संस्कृत के पद्यों द्वारा इस प्रकार की सरस भावनाएँ अभिव्यक्त नहीं हो सकी हैं । पुरुरवा ने हरिणी से पता पूछते समय उर्वशी की जो शरीराकृति व्यक्त की है, उसके आधार पर एक ग्रन्थ 32 श्री आनन्दन ग्रन्थ Bes आचार्य प्रव CASH For Private & Personal Use Only 30 www.jainelibrary.org

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