Book Title: Prachin Vastushilpa Author(s): Bhagwandas Jain Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 4
________________ 602 : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय होता है. कुओं का वेध हो तो अपस्मार रोग हो. शिव, सूर्य आदि किसी देव का वेध हो तो गृहस्वामी का विनाश होता है. स्तंभ का वेध हो तो स्त्री को कष्टदायक रहे. ब्रह्मा के सामने द्वार हो तो कुल का विनाश हो. गृह के समीप कांटेवाले वृक्ष हों तो शत्रु का भय रहता है. दूधवाले वृक्ष हों तो लक्ष्मी का विनाश होता है और फलवाले वृक्ष होने से संतान वृद्धि नहीं होती. यह बृहत्संहिता ग्रंथ में कहा है. मकान में बिजोरा, केला, दाडिम, नींबू, अमरूद, इमली, बब्बूल बेर, और पीले फूल वाले वृक्ष इत्यादि वृक्ष नहीं बोने मकान में योगिनियों के नाट्यारम्भ, महाभारत, रामायण, राजाओं के युद्ध, ऋषियों और देवों के चरित्र संबंधी चित्र कादि मांगलिक चिह्न और अच्छे स्वप्नों की पंक्ति आदि के चित्र बनाना चाहिए. उपर्युक्त जो वेध आदि संबन्धी दोष बतलाते हैं वे दोनों के बीच में दीवार अथवा रास्ते का अन्तर होने पर दोष नहीं रहते. जिस मकान का द्वार बन्द करने के बाद अपने आप खुल जाय अथवा खोलने के बाद अपने आप बंद हो जाय तो वह अशुभ माना गया है. यहाँ वास्तुशिल्प कला के आधार पर गृह सम्बन्धी कुछ गुण दोष बतलाये हैं. यह भारतीय प्राचीन संस्कृति है. आधुनिक समय में शिल्पियों को इसका अभ्यास नहीं होने से नवीन पद्धति से मकान बनाने लगे हैं. उनमें दोषों की संभावना होने से वे उन्नतिकारक नहीं हो सकते, यह प्राचीन शिल्पविधान का अभिमत है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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