Book Title: Prachin Jaingamo me Charvak Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_2_001685.pdf
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________________ 58 : प्रो. सागरमल जैन 5. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1549-2024 आचारांग (मधुकरमुनि), 1/1/1/1-3 "एवमेगेसिं णो णातं भवति-अत्यि में आया उववाइए...... से आयावादी लोगावादी कम्मावादी किरियावादी।" 7. आचारांग, 1/2/6/104- छण परिणाय लोग सण्णं सव्वसो 8. सूत्रकृतांग ( मधुकरमुनि ), 1/1/1/7-8 9. वही, 11-12 10. उत्तराध्ययनसूत्र, 5/7, जणेण सद्धि होक्खामि 11. वही, 5/5-7 12. जहा य अग्गी अरणी उ सन्तो खीरे घटा तेल्ल महातिलेसु। एमेव जाया ! सरोरंसि सत्ता संमुच्छई नासइ नावचिठे। ....... उत्तराययनसूत्र, 14/18 13. नो इन्दियग्गेज्झ अमुत्तभावा अमुत्तभावा वि य होइ निच्चो। ...... वही, 14/19 14. ऋषिभाषित (इसिभासियाइं), अध्याय 20 15. वही 16. उत्कल, उत्कुल और उत्कूल शब्दों के अर्थ के लिए देखिए -- संस्कृत-इंगलिश डिक्शनरी (मोनियर विलियम्स), 50 176 17. ऋषिभाषित ( इसिभिसियाई), अध्याय 20 18. वही 19. वही 20. वही 21. वही 22. सूत्रकृतांग द्वितीय भाग, अध्याय 1, पृ0 648-658 23. राजप्रश्नीयसूत्र ( मधुकरमुनि), पृ0 242-260 प्रो. सागरमल जैन, निदेशक, पार्श्वनाथ शोधपीठ, वाराणसी-5. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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