Book Title: Prabuddh Rauhineya Samikshatmaka Anushilan
Author(s): Ramjee Upadhyay
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 2
________________ कहा कि कन्धे पर बैठो, तुम्हें लेकर नाचूंगी। उसका नृत्य होने लगा। एक अन्य अनुचरी वधू को कंधे पर रखकर नाचने लगी। वामनिका भी शहर के क धे पर आ बैठी और वह नाचने लगा। उसने गन्धर्वों से कहा कि तारस्वर से वाद्य बजाओ । ऐसी तुमुल स्वर-लहरी के बीच रोहिणेय ने अपनी कांख से एक चौरिका सर्व गिरा दिया। उसे वास्तविक सर्प समझकर लोग भाग चले। रौहिणेय भी वर को लेकर भागा। थोड़ी दूर पर उसने अपना स्त्रीवेश उतार फेंका। वर उसे देखकर रोने लगा । रोहिणेय ने कहा कि यदि रोते हो तो इसी छुरी से तुम्हारे कान काट लूँगा । वह अपने गिरि-गह्वर की ओर चलता बना । सेठ ने समझा कि यह सांप ही है। उसकी परीक्षा करने पर ज्ञात हुआ कि वह कृत्रिम है । उसी समय उसे अपने लड़के की चिन्ता हुई । उसे माँ कन्धे पर ले गई होगी। माँ ने कहा मैं तो घर से निकली ही नहीं। तब ज्ञात हुआ कि सेठ के लड़के का अपहरण हो गया है। उस समय मगध का राजा श्रंणिक राजगृह में विराजमान था। नगर के सभी महाजन उपायन लेकर राजा से मिलने आये। उन्होंने पूछने पर बताया कि दग्धश्चौर हिमेन पौरमलयो भन्दा लम्भितः ।।३.२३।। चोर सुन्दर पुरुष, स्त्री, पशु और धन-दौलत का अपहरण करता है। राजा ने आरक्षक को बुलवाया। उसने कहा कि चोर को पकड़ने में मेरे सारे प्रयास व्यर्थ गये। फिर अभय कुमार मन्त्री आये। राजा ने मन्त्री को भी डांटा और कहा कि मैं स्वयं चोर को दण्ड दूंगा । मन्त्री ने कहा कि मैं ही पांच-छः दिनों में चोर को पकड़ लूँगा । उसी समय राजा को समाचार मिला कि महावीर स्वामी उद्यान में आये हुये हैं। राजा ने अग्र पूजा की सामग्री ली और महावीर का व्याख्यानात सुना रोहिणेय ने निर्णय किया कि राजा उग्रदण्ड प्रचण्ड है। इससे क्या ? मुझे तो आज उसी के घर से स्वर्ण राशि चुरानी है।' सन्ध्या होने वाली थी रोहिणेय ने देखा कि महावीर स्वामी कहीं परिषद् में आये हुये हैं। वह पिता की शानुसार दोनों हाथों से दोनों कान बन्द कर चलने लगा। तभी पैर में कांटा चुभ गया। वह कांटे को हाथ से निकाल नहीं सकता था, क्योंकि तभी कानों में महावीर की वाणी प्रवेश कर जाती । फिर भी कान से हाथ हटाकर कांटा निकालना पड़ा। उसके कानों में महावीर की देवलक्षण वाणी पड़ी। रात्रि में राजदण्ड उस व्यक्ति के लिए घोषित हुआ, जो एक पहर रात के पश्चात् बाहर निकले। होने को आया । यही सनन रोहित के चोरी करने का था। वह आया और राजप्रासाद के निकट पहुँच गया। पर वह चण्डिकायतन में घुस गया। नगर रक्षकों ने चण्डी मन्दिर को घेर लिया। वह कोने में जा छिपा और आरक्षकों के बीच से भाग निकला। उसके पीछे लोग दौड़े। उसने प्राकार का लङघन किया, पर कहीं जाल में फँस गया और पकड़ लिया गया। दूसरे दिन रोहिणेय राजा के समक्ष लाया गया तो उसने उसे सूली चढ़ाने का दण्ड दिया। फिर तो १. नाद्यास्माद्यदि भूपतेभंवनतः प्राज्यं हिरण्यं हरे । तन्मे लोहखुरः पिता परमतः स्वर्गस्थितो लज्जते ॥४७॥ २. चूर्णनाप्रयोगभूषिततनुः कृष्णाम्बुलिप्ताननः प्रेशरः कावेष्टितः । आद: जरमेवरक्तकुसमभितोर स्थितिजतस्तत्रात्रिवनिताभिष्वङ्गरंगोत्सुकः ।।४.१५।। निःस्वेदाङ्गा श्रमविरहिता नीरुजोऽम्लानमाल्या अस्पृष्टोववलय चलना निर्निमेषाक्षिरम्या । शश्वद्भोगेऽप्यमलवसना विस्त्रगन्धप्रमुक्ताचिन्तामात्रोपजनितमनोवाञ्छितार्थाः सुराः स्युः ॥। ४.९ ।। १७२ Jain Education International आधी रात का समय वहाँ प्रहरी के बुलाने हाथ में छुरी लेकर आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन पत्य For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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