Book Title: Prabhu Mahavir Author(s): Vasumati Daga Publisher: Z_Jain_Vidyalay_Hirak_Jayanti_Granth_012029.pdf View full book textPage 3
________________ वैश्य और शुद्र इन चार वर्गों में बंटा हुआ था। कर्म संस्कार ही इसके आधार थे। वर्ग के अहंकार ने उच्चता और नीचता की दीवार खड़ी कर दी और जन्मजात जाति का प्रचलन हो गया। महावीर : जब वस्तु जगत में समन्वय और सहअस्तित्व है तो फिर मानव जगत में समन्वय और सह-अस्तित्व क्यों नहीं। सब जीवों के साथ मैत्री करो। उसका एक ही सूत्र है सहिष्णुता, भेद के पीछे छिपे अभेद को मत भूलो। तुम जिसे शत्रु मानते हो उसे भी सहन करो और जिसे मित्र मानते हो उसे भी सहन करो। मैं सब जीवों को सहन करता हूं। वे सब मुझे सहन करें। मेरी सबके प्रति मैत्री है। किसी के प्रति मेरा वैर नहीं है। अहंकार छोड़ो - यथार्थ को देखो।। अनेकता एकता से पृथक नहीं है। और यही सह-अस्तित्व का मूल आधार है। वाचक : भगवान महावीर ने तत्व धर्म और व्यवहार के जिन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया और जनमानस को आन्दोलित किया, वह आज भी उतने ही खरे हैं जितने ढाई हजार वर्ष पूर्व थे। उन्होंने कहा * उपयोग की वस्तुओं का संयम करो। * विस्तारवादी नीति मत अपनाओ। * दूसरों के स्वत्व पर अधिकार करने के लिए आक्रमण मत करो। * मनुष्य अपने सुख-दुख का कर्ता स्वयं है। अपने भाग्य का विधाता भी वह स्वयं है। * राजा ईश्वरीय अवतार नहीं है, वह मनुष्य है। * कोई भी ग्रन्थ ईश्वरीय नहीं है, वह मनुष्य की कृति है। * भाग्य मनुष्य को नहीं बनाता, वह अपने पुरुषार्थ से भाग्य को बदल सकता है। * असंविभागी को मोक्ष नहीं मिलता, इसलिए संविभाग करो, दूसरों के हिस्से पर अधिकार मत करो। * अनाश्रितों को आश्रय दो। * शिक्षा देने के लिए सदा तत्पर रहो। * रोगियों की सेवा करो। कलह होने पर किसी का पक्ष लिए बिना शान्त करने का प्रयत्न करो। * धर्म सर्वाधिक कल्याणकारी है, किन्तु वही धर्म जिसका स्वरूप अहिंसा, संयम और तप है। * विषय वासना, धन और सत्ता से जुड़ा हुआ धर्म, सांहारिक विष की तरह है। * धर्म के नाम पर हिंसा अधर्म है। * चरित्रहीन व्यक्ति को सम्प्रदाय और वेश त्राण नहीं देते, धर्म और धर्म-संस्था एक नहीं है। * भाषा का पांडित्य और विद्याओं का अनुशासन ही मन को शांत नहीं करता। मन की शांति का एक मात्र साधन है धर्म। महान् शांति-दूत, अहिंसा के पुजारी और समता के अवतार भगवान महावीर का ईसवी पूर्व 527 में निर्वाण हुआ। धर्म, ज्ञान, समता और अहिंसा की जो ज्योति उन्होंने जगाई, वह आज ढाई हजार वर्ष बाद भी अपने प्रकाश से सारे संसार का मार्गदर्शन कर रही है... अगर हम सब उनके दिखाये रास्ते पर चलें तो संसार में फैले अंधकार को दूर कर सकते हैं। ___ अदृष्ट धर्मों का खंडन मत करो। * सत्य की सापेक्ष व्याख्या करो। अपने विचार का आग्रह मत करो, दूसरों के विचारों को समझने का प्रयत्न करो। * राग-द्वेष से मुक्त होना अहिंसा है। समानता का भाव सामुदायिक जीवन में विकसित होता है तभी अहिंसक क्रान्ति सम्भव है। * उन्होंने कहा- किसी का वध मत करो। किसी के साथ वैर मत करो। सबके साथ मैत्री करो। दास बनाना हिंसा है इसलिए किसी को दास मत बनाओ। पुरुष स्त्रियों को और शासक शासितों को पराधीन न समझें, इसलिए दूसरों की स्वाधीनता का अपहरण मत करो। * ऊंच-नीच का विचार ही नहीं रखना चाहिए। न कोई जाति ऊंची है और न कोई नीची। जाति व्यवस्था परिवर्तनशील है, काल्पनिक है। इसे शाश्वत बनाकर हिंसा को प्रोत्साहन मत दो, सब जातियों को अपने संघ में सम्मिलित करो। * स्वर्ग मनुष्य का उद्देश्य नहीं है, उसका उद्देश्य है परम शांति, निर्वाण। * युद्ध हिंसा है, वैर से वैर बढ़ता है, उससे समस्या का समाधान नहीं जाति पांति की चिर कटुता के, तम को जिसने दूर भगाया। समता का शुभ पाठ पढ़ाकर, जिसने सबको गले लगाया। तप संयम से देह मुक्ति का, किया प्रकाशित जिसने पथ है। मनुज मात्र के धर्म केतु की, दिशा दिशा में सदा विजय हो। मन का कल्मष धोकर जिसने, दया क्षमा की ज्योति जगायी। विष की बेल काटकर जिसने, अमृत की लतिका लहराई। अंधकार को दूर भगा कर, जिसने सबको दिया उजाला। विश्व गगन के महासूर्य की, धर्म कीर्ति-निधि नित अक्षय हो। होता। * अपने शरीर और परिवार के प्रति होने वाले ममत्व को कम करो। हीरक जयन्ती स्मारिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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