Book Title: Pita ki Chaya me Author(s): Allen Goodman Publisher: Z_Jain_Vidyalay_Granth_012030.pdf View full book textPage 2
________________ कुछ जानता है। आखिर वह खुद भी तो कभी बच्चा था, उसके भी पिता थे। वह कल्पना करता आया था कि वह अपनी जवानी के कंटकों से बचा कर अपने बच्चों को संभाले लिए जा रहा है। सोचता था कि उसने जो नींव रखी है, जहाँ तक निर्माण किया है; उसके बच्चे आगे का गगनचुंबी निर्माण करेंगे। परंतु उसके लड़के बहुत कुछ वैसे ही निकले जैसा कि कभी वह स्वयं था। अब धीरे-धीरे उसने सुप्रसिद्ध अंगरेजी उपन्यासकार डोरिस लेसिंग के इस कथन को स्वीकार करना भी शुरू कर दिया है : "उसके लड़के को एकदम उसी राह पर चलना होगा जिस पर वह स्वयं या उसके समकालीन चल चुके हैं ताकि वह सब बातों को इस तरह सीखे जैसे कि आज तक कोई नहीं सीखा है।" इस हिसाब से, वह स्वयं भी वही सब सीखता रहा है जिन्हें कभी स्वयं उसके पिता ने भावनाओं की गहराई, बच्चों के प्रति आसक्ति और उन्हें अंतत: उन्मुक्त छोड़ देने की आवश्यकता को हँसते हँसते जीना लेकर सीखा था। __तभी मैच खत्म हो जाता है। वह दुबला-पतला, लंबा सा बैंक में आए लुटेरे ने खजांची को एक पुरजा लिख कर थमा लडका लंबे-लंबे डग भरता उसकी ओर आता है। वह उसे अपना दिया : "सारा पैसा थैले में डाल दो और हिलो नहीं. समझी दस्ताना और गेंद थमा देता है। अब वह अपनी टीम के साथियों के बुलबुल?'' साथ जाकर पीत्सा खाने के लिए पैसे मांग कर वहाँ से उड़नछू हो संदेश पढ़ने के बाद खजांची ने कागज के उस पुरजे के पीछे लेता है। मैदान की अभी आधी ही दूरी उसने तय की होगी कि पलट कुछ लिख कर लुटेरे को वापस दे दिया। उसका संदेश था : कर चिल्लाता है, "डैड, आने के लिए थैक्स।' "अपनी टाई तो ठीक कर लो चोंच। सुरक्षाकर्मी गुप्त टी.वी. कैमरे पिता भी हाथ हिलाता है। ठीक है, ठीक है। सच यही तो पर तुम्हारा थोबड़ा देख रहे हैं।" हमेशा होता है। बच्चे देखते ही देखते बड़े हो जाते हैं। एक बड़े कंपनी समूह के अध्यक्ष की अचूक निर्णय क्षमता की बड़ी ख्याति थी। एक बार उसने कर की मार से बचने के फेर में एक योजना पर पैसा लगाया। सारी योजना धोखाधड़ी सिद्ध हुई और एक लाख डालर का नुकसान हो गया। उसके व्यावसायिक सहयोगी 'उस पर फब्तियाँ कसते और आयकर विभाग ने भी सारे मामले की जाँच पड़ताल शुरू कर दी। इस स्थिति को सहना बड़ा कठिन था सो एक दिन अपने दफ्तर के मोटे कालीन पर वह भहरा कर गिर पड़ा और रोने लगा, "मैं रोजाना लाखों करोड़ों का सौदा करता हूँ, पर शायद ही कभी नुकसान होता हो। इस बार मैंने इतनी बड़ी बेवकूफी आखिर कर कैसे की।" तभी दफ्तर का फरनीचर डोलने लगा, रोशनी मंद पड़ गई तथा उसके कम्प्यूटर से गर्जन हुई : "तुम समझते हो कि अकेले तुम्हीं तुम परेशान हो। मुझे देखो, मैं खुद इस खेल में कम से कम पाँच लाख के वारे न्यारे कर लेने के फेर में था।" विद्वत खण्ड/८० शिक्षा-एक यशस्वी दशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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