Book Title: Parshwanath Stavanam
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 5
________________ अनुसन्धान-५५ शमजलगतं मनो निर्गमायावकाशं न लातीति सञ्चित्य सञ्चित्यमेते गुणाब्धिप्रभो ! // 23 // दण्डकः // सर्वसुरेन्द्रा विश्वनरेन्द्राः स्नापनचन्द्राश्चोज्झिततन्द्रा मङ्गलबुधगुरुशुक्रशनैश्चरराहुककेतुकखेटकवृन्दाः / सोमयमासुरवैश्रवणामरवारणलोकपकिन्नरभूताः पार्श्वजिनाधिपकीर्तनसंस्तवशान्तिकरा जगतां तु भवन्तु // 24 // रत्नमाला // अमतितिमिरवर्जितं, ज्ञानमास्तनसुमर्दितम् / भारतीवदनचुम्बितं, स्मर जिनं जगदर्चितम् // 25 // सुमुखम् // निर्दोषध्वनिगर्जते विलसते मुक्त्या तमो भास्वते सम्मोहं हरतेऽर्हते विकसते ते प्रातिहार्यश्रिया / सच्चित्ते भ्रमते पयोजसरते ध्यानाम्बुदोद्विद्युते श्रीवामेय ! नमो नमो मम विभो ! ज्ञानाम्बुधौ मज्जते // 26 // हरिहरिचलचित्तगुप्तिगुप्तं, हरिहरिदङ्गमयूषराजमानम् / कमठहरिहरि हरिप्रियाद, हरिहरिणातपवारणत्रयाप्तम् // 27 // हरिहरिपरिचर्ययोपयुक्तं, नरवरिहरिसुदीप्रलोकलेखम् / / हरिहरिभयभीतिं च पाश्र्वं, हरिहरिचन्दनसोदरं नमामि // 28|| काव्ययुग्मम् / / नीतिनदीनसुमीनमहीनकिरीट-पीनविलीनसुगन्धविविधकुसुमार्चितपादपङ्कजम् / दीनदयालुमुनीनमहीनमनोहरचरितमणिं लीन मुने ! जिनमुपचर सुर इव सुरतरुमङ्ग // 29 // चित्राक्षरा // इति मुदितसकलचन्द्र-स्तुतमिति पार्वं च जिनचन्द्र / गुरुविजयदानभद्रं शान्तिकरं सर्वदा लोके // 30 // इति श्रीअजितशान्तिस्तवनच्छन्दोरीत्या श्रीपार्श्वनाथस्तवनं सम्पूर्णम् / विहितं श्रीसकलचन्द्रवाचकचरणैरिति मङ्गलम् / संवत् १८२४ना वर्षे आषाढ शुदि 14 शुक्रे मुनिदानसौभाग्य लपीकृतम् //

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