Book Title: Paristhiti ka aur Jain Chintan Author(s): Rammurti Tripathi Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf View full book textPage 1
________________ पारिस्थितिकी और जैन चिन्तन . • डॉ. राममूर्ति त्रिपाठी 888888 जैन सन्न और पर्यावरण - मनीषियों की मान्यता के अनुसार 'पारिस्थितिकी वह अध्ययन है जो विभिन्न जीवों के सम्बन्ध में उनके अपने-अपने पर्यावरण के परिवेश में किया जाता है। इसके अन्तर्गत सम्पूर्ण जैव-जगत् यानी कनक सहित सारे पौधे, सूक्ष्म जीवसहित जानवर और मनुष्य तक आ जाते हैं। फिर स्वयं पर्यावरण भी है जिसमें जीव-मण्डल में विद्यमान चेतन जीव ही नहीं, बल्कि प्रकृति में क्रियाशील अचेतन शक्तियाँ भी हैं। इस पारिस्थितिकी की परिभाषा में एक पारिभाषिक शब्द आया है -पर्यावरण। पारिस्थितिकी में इसी के परिवेश में जीवों के सम्बन्ध में अध्ययन किया जाता है। जिस व्यवस्था में वायु, जल, मनुष्य, जीव-जन्तु एवं प्लवक, मिट्टी एवं जीवाणु ये सब जीवन धारण प्रणाली में अदृश्य रूप से एक दूसरे से गुथे हुए हैं- वहीं व्यवस्था पर्यावरण कहलाती है। . बात यह है कि एक कमबद्ध इकाई विश्व या ब्रह्माण्ड है। इसमें अनेक आकाश गंगाएं हैं। इन आकाश गंगाओं में एक ग्रह या नक्षत्र सूर्य है। सूर्य-केन्द्रित सौर-मण्डल है। सौरमण्डल में कई ग्रह हैं जो उसको केन्द्र बनाकर घूमते हैं। इन ग्रहों में एक पृथ्वी है। इस पृथ्वी की आन्तरिक और बाह्य संरचना का भी अध्ययन किया जा चुका है। पृथ्वी का केन्द्र ठोस आन्तरिक क्रोड है जो १३०० किलोमीटर मोटा है जो २०८० किलोमीटर के बाहरी क्रोड से घिरा है। यह बाहरी क्रोड पिघला हुआ है जो २९०० किलोमीटर की मोटाई वाले मैटल से घिरा है। इसका भी ऊपरी भाग पृथ्वी की परत से ढंका है जिसकी मोटाई १२ से ६० किलोमीटर है। पृथ्वी की बाहरी सतह चार भागों में बटी हुई है-(१) लियो स्केयर (२) हाइड्रो स्केयर (३) एटमास्फेयर (४) बायोस्फेयर। पहले में पृथ्वी की ऊपरी सतह आती है जिसमें जमीन और समुद्री तल, दूसरे में जल-मण्डल, तीसरे में वायुमण्डल और चौथे में जैव-मण्डल (जीवन का क्षेत्र) है। यह थल, जल तथा वायु सभी मण्डलों में व्याप्त है। थल-मण्डल और जल-मण्डल के अतिरिक्त यह जो वायु-मण्डल है वह पृथ्वी का रोधी आवरण है जो सूर्य के गहन प्रकाश और ताप को नरम करता है। इसी ओजोनिक परत (०३) सूर्य की जीवनाशक परागवैगनीकिरणों को सोख लेती है। वायुमण्डल गुरुत्व द्वारा पृथ्वी से बंधा है। जलमण्डल से वाष्पोत्सर्जन के जरिए (पौधों के वाष्पीकरण द्वारा भी) पानी वायुमण्डल में प्रवेश करता है और हिम या वर्षा द्वारा वहाँ से नीचे आता है। जीवमण्डल ही जीवन को आधार प्रदान करता है। इस जीवनमण्डल में शैवाल, फंगस और काइयों से लेकर उच्चतर किस्म के पौधों की साढ़े तीन लाख जातियाँ हैं। इसी जीवमण्डल में एक कोशिक प्राणी से लेकर मनुष्य तक एक करोड़ दस लाख प्रकार की प्राणि-जातियाँ हैं। जीवमण्डल इस सभी के लिये आवश्यक सामग्री-प्रकाश, ताप, पानी, भोजन तथा आवास की व्यवस्था करता है। इस प्रकार यह जैवमण्डल पारिस्थितिक व्यवस्था एक १. मोगा, इयर तुक, १९९१, पृष्ठ ७६ (११०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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