Book Title: Pandavcharitra Mahakavyam Part 1
Author(s): Devprabhsuri, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 331
________________ पाण्डवाना आगमनम्। 373 भीपासव किमुच्यते / पुनर्वेगेन तत्रास्मा-भय द्वैतवने वने // 556 // तथा कृत्वा वचः कुन्त्या-स्तानापृच्छय समत्सुकः / तत्रैर- HC नुयातोऽगा-जैगमेषी यथागतम् // 557 // पञ्चवर्षीमतीत्यैव-मन्यान्यवनभूमिपु / पुनद्वैतवनोत्सङ्ग-मधितस्थौ युधिष्ठिरः सर्गः // 558 // स्वयं मणिमयं दाम, पर्यवत्त नपासुतः। आरोपयच पाञ्चाल्याः कर्णोत्तंसे वदम्बुजम् // 559 // मातुः पल्याच तैस्तत्र, समाधिस्थैर्यदद्भुतम् / अत्यद्भुतं प्रभावं च, स्मारंस्मारममुद्यत ||560 // प्रीति कदाचिदिन्द्रस्य, नागेन्द्रस्य कदाचन / // 16 // सवर्णयन्तः सुखेन स्म, समयं गमयन्ति ते / / 561 / / कदाचिजैनेन्द्रस्तवननवगुम्फव्यतिकरैः, कदाचिन्मार्गस्थश्रमणचरणोपास्तिविधिना। कदाचिनिर्णीतस्वसमयविचारोपनिषदा, दिनानि स्वान्येते किमपि चरितार्थान्यरचयन् // 562 // इति मस्तधारिश्रीदेवप्रभसरिविरचिते पाण्डवचरित्रे महाकाव्ये किरातार्जुनीय-तलतालवध-कमला हरणवर्णनो नामाष्टमः सर्गः // 8 // 1 उपनिषद्-ब्रह्मविद्या / 162 //

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