Book Title: Pandava Puran me Rajnaitik Sthiti Author(s): Rita Bishnoi Publisher: USA Federation of JAINA View full book textPage 7
________________ पाण्डव पुराण में राजनैतिक स्थिति १०५ प्रयोग होता था लेकिन सुलोचना के स्वयंवर में जयकुमार के वरण करने पर अर्ककीर्ति कुमार तथा जयकुमार के बीच हुये युद्ध में चतुरङ्ग सेना का उल्लेख आया है। इसी प्रकार द्रौपदी स्वयंवर के समय पाण्डव-कौरवों के बीच हुये युद्ध में चतुरङ्ग सेना का वर्णन आया है। इससे स्पष्ट है कि राजा लोग हर समय युद्ध के लिये तैयार रहते थे तथा सेना हमेशा सुसज्जित एवं तत्पर रहती थी। इन चतुरङ्ग सेना के अतिरिक्त पाण्डव पुराण में विद्याधर सेना तथा अक्षौहिणी सेना का उल्लेख भी आया है। युद्ध-प्रणाली पाण्डव पुराण में प्राप्त युद्ध सम्बन्धी वर्णन प्राचीन काल से चली आ रही धर्मयुद्ध की परम्परा की है। पाण्डव पुराण के युद्ध वर्णन से स्पष्ट है कि प्रायः रात्रि में युद्ध रोक दिया जाता था। लेकिन बीसवें पर्व में एक स्थान पर कहा गया है कि योद्धागण रात्रि में और दिन में हमेशा लड़ते रहते थे और जब उन्हें निद्रा आती थी तब वे रणभूमि में ही इधर-उधर लुढ़कते थे और सो जाते थे फिर उठकर लड़ते थे और मरते थे। युद्ध के समय उचित-अनुचित, मान-मर्यादा का पूरा ध्यान रखा जाता था। युद्ध भूमि में द्रोणाचार्य के उपस्थित होने पर अर्जुन शिष्य का गुरु के साथ युद्ध करना अनुचित बतलाते हैं तथा मर्यादा का पालन करते हुये, गुरु के कहने पर भी वे गुरु से पहला बाण छोड़ने को कहते हैं । पितामह भीष्माचार्य के युद्ध भूमि में पृथ्वी पर गिर पड़ने पर दोनों पक्षों के सभी राजा रण छोड़कर आचार्य के पास आ जाते हैं। इससे स्पष्ट है कि बड़ों का मान-सम्मान युद्ध भूमि में भी किया जाता था। पाण्डव पुराण के युद्ध वर्णनों में प्रायः अनेक प्रकार के दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्रयोग करने का उल्लेख आया है-उदाहरणतः शासन देवता से प्राप्त नागबाण', उत्तम दैवी गदा, जलबाण, स्थल बाण तथा नभ बाण'। विद्या के बल से भी युद्ध किया जाता था। इस सन्दर्भ में माहेश्वरी विद्या, बहुरूपिणी, स्तंभिनी, चक्रिणी, शूला, मोहिनी' ३, भ्रामरी आदि का उल्लेख युद्ध वर्णनों में पाया जाता है। १. पाण्डव पुराण, ३३८१-८४ । २. पाण्डव पुराण, १५॥१३०-१३१ । ३. पाण्डव पुराण, ३३१०४ । ४. पाण्डव पुराण, १८।१७०, १९४४५, १९३९६ । ५. पाण्डव पुराण, २०॥३८, १९६१९६ । ६. पाण्डव पुराण, २०१२४१ ।। ७. पाण्डव पुराण, १८३१३१-१३४ । ८. पाण्डव पुराण, १९।२५१ । ९. पाण्डव पुराण, २०।१७६ । १०. पाण्डव पुराण, २०११३३ । ११. पाण्डव पुराण, २०।२८३ । १२ पाण्डव पुराण, २०।३०७ । १३. पाण्डव पुराण, २०१३३० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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