Book Title: Panch Hariyali
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ सप्टेम्बर 2009 107 एक दिवस- जोवन तेनुं, पछे नवि आवे को काम; पंच अक्सर छ सुंदर तेहना, सोधी लेज्यो नाम, चतुर नर० 5 कांतिविजय कवि इणि परि बोलइ, सुणयो नर ने नारी; ए हरिआलि अरथ कहिये, जाउं हूं तेहनी बलिहारी, चतुर नर०६ _ - प्रकीर्ण पत्र उकेल : फूलनी माळा. बे पुरुषोए झाली बे हाथे फूलनी माळा पकडाय. माळा स्त्रीलिंग छे माटे 'बेटी', पण एनी 'मा' कोई नथी. गोरी रे गुणवंति गुणि आगली रे, तेहना बापनी जगमां माम रे; बापनो बाप सामो मलइ रे, त्यारि न जइ[इं] गामि रे; गोरी० 1 बापना बापस्युं ते मिली रे, त्यारिं थयो ते बाप रे; बापस्युं तेणि संगम कीउ रे, तो हि न लागु पाप रे, गोरी० 2 बलवंत बेटो रे तेहनी कूखथी रे, ऊपनो जगि एक रे; मान दीइं मोटा राजवी रे, तेमां घणो अव(वि)वेक रे; गोरी० 3 जेठइ ते होइ दूबली रे, तोहि वांछिइ सहू कोय रे; भादिरवइ ते नारीनई रे, मान थोडे स्यु होइ रे, गोरी० 4 रूप ते पूर्णिमा सारिखं रे, थोडि मुल्ल वेचाय रे; उत्तमनइ कुलि ऊपनी रे, नीच तणि धरि जाय रे, गोरी० 5 एक कुलथी ऊपना रे, सात अक्षरनुं नाम रे; मेघचंद गणि शीस कहइ रे, ए छइ अरथनो ठाम रे, गोरी० 6 - प्रकीर्ण पत्र उकेल : दूध-दही-छाश-घी. C/o. पार्श्वचन्द्रगच्छ जैन उपाश्रय, माणेकचोक, कन्याशाला सामे, खम्भात. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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