Book Title: Panch Anuvrato ke Aticharo ki Prasangikta Author(s): Prakashchand Jain Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf View full book textPage 2
________________ 149 |15,17 नवम्बर 2006|| | जिनवाणी ४. अइभारे- क्षमता से अधिक भार डालना। पशुओं पर ज्यादा बोझ ढोना, बालकों से उनकी क्षमता से अधिक काम लेना, नौकरों से अधिक समय तक काम लेना, बदले में अलग से कुछ नहीं देना आदि अतिभार है। इससे उनका शोषण होता है जो हिंसा की ही पूर्व अवस्था है, अतः इसे अतिचार माना गया है। ५. भत्तपाणविच्छेए- खाने-पीने में रुकावट डालना। काम सही तरीके से नहीं करने पर या काम करते हुए नुकसान हो जाने पर गुस्से में आकर कभी माता-पिता, सेठ, मैनेजर आदि अपने अधीनस्थ पुत्र, नौकर, जानवर आदि का खाना-पीना बंद कर देते हैं, उसके वेतनादि में कटौती कर देते हैं, जिससे उन्हें पीडा का अनुभव होता है। जो हिंसा की ही पूर्व अवस्था है, अतः यह अतिचार है। दूसरा अणुव्रत- थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं- मोटे झूठ का त्याग। कन्या, गाय, बैल, भूमि, धरोहर व झूठी साक्षी सम्बन्धी ५ प्रकार का मोटा झूठ है। श्रावक इनका सेवन नहीं करता। इस अणुव्रत के ५ अतिचार निम्न हैं१. सहसभक्खाणे- सहसा किसी पर झूठा आरोप लगाना। किन्हीं को परस्पर बातचीत करते देखकर अचानक उन पर झूठा आरोप लगाना कि इनके नाजायज सम्बन्ध हैं या ये मेरी बुराई कर रहे हैं आदि। अचानक झूठा आरोप लगाना झूठ की ही पूर्व अवस्था होने से अतिचार है। २. रहस्सब्भक्खाणे- एकान्त में गुप्त बातचीत करते हुए लोगों पर झूठा आरोप लगाना। आरोप में उस व्यक्ति का झूठ बोलने का भाव नहीं है, किन्तु उसके कृत्यों के अनुमान के आधार पर वह उस पर आरोप लगाता है। उसका वह आरोप झूठ की ही पूर्व अवस्था होने से अतिचार है। ३. स्वदारमंतभेए- अपनी स्त्री का मर्म प्रकाशित करना। गृहस्थ जीवन की गाड़ी परस्पर विश्वास के आधार पर चलती है। वे एक दूसरे की गुप्त से गुप्त बात भी एक दूसरे को बताते हैं। यदि दोनों में से एक भी उन बातों को लोगों में प्रकट करता है तो सम्बन्धों में तनाव की स्थिति पैदा हो सकती है। तथा यह धोखा या विश्वासघात है। झूठ की ही पूर्व अवस्था होने से अतिचार है। ४. मोसोवएसे- झूठा उपदेश देना। भगवान् की वाणी के अर्थ और मर्म को सही तरह से नहीं जानते हुए भी अपनी तरफ से विपरीत अर्थ का कथन करना। इसमें किसी को नुकसान पहुंचाने का दृष्टिकोण नहीं है,अतः यह मोटे झूठ की श्रेणी में तो नहीं आता, लेकिन कथन विपरीत होने से अतिचार है। ५. कूडलेहकरणे- कूड़ा लेख लिखना। भगवान् की वाणी के अर्थ और भाव को नहीं समझते हुए भी अपनी तरफ से विपरीत अर्थ का लेखन करना अतिचार है। तीसरा अणुव्रत- थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं - मोटी चोरी का त्याग । दीवार तोड़कर, गाँठ खोलकर, ताले पर चाबी लगाकर, मार्ग में चलते हुए को लूटकर, किसी की वस्तु को जानबूझकर लेना, ये मोटी चोरी के ५ प्रकार हैं, श्रावक इस व्रत में इनका त्याग करता है। इस अणुव्रत के ५ अतिचार इस प्रकार हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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