Book Title: Osiya
Author(s): Brajendranath Sharma
Publisher: Z_Agarchand_Nahta_Abhinandan_Granth_Part_2_012043.pdf

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Page 2
________________ नन्दि पर बैठे शिवकी मूर्तियाँ हैं । मन्दिरके दाहिनी ओर कुवेरकी मूर्ति है । इसके बाद महिषासुरमर्दिनीकी चर्तुभुजी प्रतिमा है । इन्होंने एक हाथसे महिषमें त्रिशूल घुसेड़ रखा है तथा दूसरे हाथसे उसकी पूँछ पकड़ रखी है । इस आशयकी मूर्तियां मथुरासे भी प्राप्त हुई हैं । जो गोदीमें लेटे दानव हिरण्यकशिपुका पेट फाड़ रहे हैं परन्तु इसमें महत्वपूर्ण यह है कि इनके दाढ़ी नहीं है, । है । इनके साथ दो दिक्पालोंकी मूर्तियां हैं, जो काफी खण्डित हो गई हैं । मध्यमें भगवान् विष्णुके नरसिंह अवतार की मूर्ति है, इनके आगे वाली ताखमें बहुमुखी ब्रह्माकी मूर्ति है, जैसा सामान्यतः ब्रह्माकी मूर्तियों में देखने को मिलता इस मन्दिर के ऊपर वाली पंक्ति में श्रीकृष्णके जीवनसे सम्बन्धित अनेक दृश्य उत्कीर्ण हैं, जिनका अनेक वैष्णव पुराणों जैसा कि भागवत पुराण आदिमें विस्तृत वर्णन मिलता है । इन दृश्योंमें कृष्ण जन्म, पूतना वध, शकट-भंग, कालिय-दमन, अरिष्टासुर वध, वत्सासुर वध, कुवलयापीड-वध गोवर्धनधारी कृष्ण, आदि अनेक दृश्य अंकित हैं । एक तो पूर्ण रूपसे नष्ट विशेष रूपसे उल्लेखनीय हरिहर मन्दिर नं० १ के चारों ओर एक-एक लघु देवालय है, जिसमेंसे हो गया है । इन पर बनी मूर्तियों में कंकाली महिषासुर मर्दिनी तथा शृङ्गार - दुर्गा हैं । १२ भुजाओं वाली शृङ्गार दुर्गा जो सिंहवाहिनी है, अपने एक हाथसे मांग निकाल रही है तथा बायें हाथसे पैर में पायल पहन रही हैं । इस आशयकी अन्य मूर्तियों आबानेरी तथा रोडासे भी प्राप्त हुई है, जो सभी समकालीन ( ८ वीं शती ईसवी) हैं। मुख्य मन्दिर के पीछेके बाईं ओर वाले लघु देवालय में सूर्य की स्थानक तथा सूर्य व संज्ञाके पुत्र अश्वारोही रेवंतकी भी कलात्मक प्रतिमायें हैं । पीछेके दाहिनी ओर वाले लघु देवालय पर स्थानक विष्णु तथा गरुड़ासन विष्णुकी मूर्तियां विशेष महत्त्वकी हैं। मुख्य मन्दिरके सामने कौनों पर नृत्य गणपति एवं बैठे कुवेर की मूर्तियां हैं, जो सुख एवं सम्पदा की द्योतक हैं । इसी मन्दिरके बाईं ओर बुद्धावतारकी ध्यानमुद्रा में मूर्ति है । हरिहर मन्दिर नं० २ इस मन्दिर के पार्श्व भाग पर भी कृष्णलीलाके विभिन्न दृश्योंके अतिरिक्त, अष्ट-दिक्पाल, गणपति, त्रिविक्रम, विष्णु, हरिहर, सूर्य, शिव महिषासुरमर्दिनी, नरसिंह भगवान् एवं ब्रह्मादिकी मूर्तियां हैं । यह भी पञ्चायतन प्रकारका मन्दिर था । यहीं पर हमें शिव-पार्वतीके विवाह 'कल्याण सुन्दर का दृश्य देखने को मिलता है, जैसी कि प्रतिमायें कामां ( भरतपुर ), कन्नौज, तथा अलोरा आदि में स्थित हैं । हरिहर मन्दिर नं० ३ इस मन्दिर पर भी उपर्युक्त वर्णित दोनों मन्दिरोंकी तरह न केवल कृष्णलीलाके अनेक दृश्य मिलते हैं, वरन् अष्ट-दिक्पाल, शिव, नरसिंह, त्रिविक्रम, सूर्य, गणेश व महिषासुरमर्दिनीकी भी मूर्तियां देखने को मिलती हैं । मन्दिर नं० ४ एवं ५ में मूर्तिकला पहिले की ही तरह है । मन्दिर नं० ४ में सबसे ऊपरी भाग में विष्णुकी खड़ी प्रतिमा है । मन्दिर नं० ५ ओसियां में बनी बावड़ीके समीप है । इस पर भी दिक्पालोंके अतिरिक्त गणेश, सूर्य, विष्णु एवं महादानवका विनाश करती महिषासुरमर्दिनीकी प्रतिमायें हैं । सूर्य मन्दिर सूर्य पूजा राजस्थानमें विशेष रूपसे प्रचलित थी, जैसा कि वहाँके प्राचीन मन्दिरों एवं प्राप्त प्रतिमाओंसे विदित होता है। ओसियांका सूर्य मन्दिर जो १० वीं शती में निर्मित हुआ प्रतीत होता है, कलाकी दृष्टिसे वहाँ के सभी मन्दिरों में श्रेष्ठ है । परन्तु अभाग्यवश इसके गर्भग्रह में भी सूर्यकी प्रतिमा नहीं रह पाई इतिहास और पुरातत्त्व : १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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