Book Title: Nyaya Kumudchandra
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 2
________________ जैन धर्म और दर्शन श्राचार्य प्रभाचन्द्र के समय के विषय में पुरानी नववीं सदी की मान्यता का तो निरास पं० कैलाशचन्द्रजी ने कर ही दिया है। उसके संबंध में इस समय दो मत हैं, जिनका श्राधार 'भोजदेवराज्ये' और 'जयसिंहदेवराज्ये' वाली प्रशस्तियों का प्रक्षिप्तत्व या प्रभाचन्द्र कर्तृकत्व की कल्पना है । अगर उक्त प्रशस्तियाँ प्रभाचन्द्रकर्तृक नहीं हैं तो समय की उत्तरावधि ई० स० १०२०, और अगर प्रभाचन्द्र कर्तृक मानी जाए तो उत्तरावधि ई० स० १०६५ है । यही दो पक्षों का सार है । पं० महेन्द्रकुमारजी ने प्रस्तावना में उक्त प्रशस्तियों को प्रामाणिक सिद्ध करने के लिए जो विचारक्रम उपस्थित किया है, वह मुझको ठीक मालूम होता है । मेरी राय में भी उक्त प्रशस्तियों को प्रक्षिप्त सिद्ध करने की कोई बलवत्तर दलील नहीं है । ऐसी दशा में प्रभाचन्द्र का समय विक्रम की ११ वीं सदी के उत्तरार्द्ध से बारहवीं सदी के प्रथमपाद तक स्वीकार कर लेना सभी टयों से सयुक्तिक है । ४७० मैंने 'कलत्रय' के तो यह है कि समन्तभद्र और प्राक्कथन में ये शब्द लिखे हैं- " अधिक संभव कलंक के बीच साक्षात् विद्या का ही संबंध रहा हो गई, क्योंकि लोग उस प्रजापीड़क की मौत की खबर से बहुत खुश हुए और उस तिथि में एक संवत् शुरू हुआ जिसे ज्योतिषी विशेषरूप से बर्तने लगे । --- किन्तु विक्रमादित्य संवत् कहे जानेवाले संवत् के आरम्भ और शक के मारे जाने मैं बड़ा अन्तर है, इससे मैं समझता हूँ कि उस संवत् का नाम जिस विक्रमादिस्स के नाम से पड़ा है, वही शक को मारनेवाला विक्रमादित्य नहीं है, केवल दोनों का नाम एक है । ' - ( पृ० ८२४-२५ ) । ' इस पर एक शंका उपस्थित होती है शालिवाहन बाली अनुश्रुति के कारण। अलबरूनी स्पष्ट कहता है कि ७८ ई० का संवत् राजा विक्रमादित्य (सातवाहन) ने शक को मारने की यादगार में चलाया ? वैसी बात ज्योतिषी भट्टोत्पल ( ६६६ ई० ) और ब्रह्मदत्त ( ६२८ ई०) ने भी लिखी है । यह संवत् अत्र भी पंचागों में शालिवाहन शक अर्थात् शालिवाहनाब्द कहलाता है।... - ( पृ० ८३६) ।" इन दो अक्तरणों से इतनी बात निर्विवाद सिद्ध है कि विक्रमादित्य ( सातवाहन ) ने शक को मारकर अपनी शक विजय के उपलक्ष्य में एक संवत् चलाया था। जो सातवीं शताब्दी ( ब्रह्मगुप्त ) से ही शालिवाहनाब्द माना जाता है। धवला टीका श्रादि में जिस 'विक्रमार्कशक' संवत् का उल्लेख आता है वह यही 'शालिवाहन शक' होना चाहिए। उसका 'विक्रमाकेशक' नाम शक विजय के उपलक्ष्य में विक्रमादित्य द्वारा चलाये गए शक संवत् का स्पष्ट सूचन करता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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