Book Title: Niryukti Sahitya Ek Punarchintan
Author(s): 
Publisher: Z_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf

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Page 15
________________ चतीन्द्रसृरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य - ... -- देखें,नन्दीसूत्र-स्थविरावली, गाथा 36-41 / मोहक्षपकक्षीणमोहजिनाः क्रमशोऽसंङ्ख्येयगुण निर्जराः।। 64. पच्छा तेण एगिदियजीवसाहणं गोविंदणिज्जुत्ती कया। एस णाणतेणो। -- तत्त्वार्थसूत्र (उमास्वाति),सुखलाल संघवी, 9.47 / एव दंसणपभावगसत्थट्ठा। ७१अ.णिज्जुत्ती णिज्जुत्ती एसा कहिदा मए समासेण। , - निशीथचूर्णि, पृ० 260 अह वित्थार पंसगोऽणियोगदो होदि णादव्वो।। 65. निण्हयाण वत्तव्यया भाणियव्वा जहा सामाइयनिज्जुत्तीए। आवासगणिज्जुत्ती एवं कधिदा समासओ विहिणा। -उत्तराध्ययनचूर्णि, जिनदासगणिमहत्तर, विक्रम संवत् 1989, णो उवजुंजदि णिच्चं सो सिद्धिं, जादि विसुद्धप्पा।। . पृ० 95 / -- मूलाचार (भारतीय ज्ञानपीठ),६९१-६९२॥ 66. इदाणिं एतेसिं कालो भण्णति 'चउद्दस सोलस वीसा' गाहाउ दो, एसो अण्णो गंथो कप्पदि पढिदुं असज्झाए। इदाणिं भण्णति आराहणा णिज्जुत्ति मरणविमत्ती य संगहत्युदिओ। 'चोद्दस वासा तइया' गाथा अक्खाणयसंगहणी। वही, पृ० 95 / पच्चक्खाणावसय धम्मकहाओ एरिस ओ . 67. मिच्छद्दिट्ठी सासायणे य तह सम्ममिच्छदिट्ठी य। -- मूलाचार, 278-279 / अविरयसम्मद्दिट्ठी विरयाविरए पमत्ते य।। (ब) ण वसो अवसो अवसस्सकम्ममावस्सयंति बोधव्वा। तत्तो य अप्पमत्तो नियट्ठि अनियट्ठि बायरे सुहुमे। जुत्ति ति उवाअंत्ति ण णिरवयवो होदि णिज्जुत्ती।। उवसंत खीणमोहे होइ सजोगी अजोगी य।। . - मूलाचार, 515 / - आवश्यकनियुक्ति, (नियुक्तिसंग्रह, पृ० 140) 72. ण वसो अवसो अवसस्स कम्म वावस्सयं ति बोधव्वा। 68. आवश्यकनियुक्ति (हरिभद्र) भाग 2, प्रकाशक-श्री भेरुलाल कन्हैया जुत्ति त्ति उवाअंति य णिरवयवो होदि णिजुत्ती।। लाल कोठारी धार्मिक ट्रस्ट, मुम्बई, वीर सं. 2508, पृ० 106 -नियमसार, गाथा 142, लखनऊ, 1931 / 107 / 73. देखें-- कल्पसूत्र, स्थविरावली विभाग। सम्मत्तुपत्ती सावए य विरए अणंतकम्मसे। दसणमोहक्खवए उवसामंते य उवसते।। 74. देखें-मूलाचार,षडावश्यक-अधिकार। खवए य खीणमोहे जिणे अ सेढी भवे असंखिज्जा। 75. थेरस्स णं अज्ज विन्हुस्स माढरस्सगुत्तस्स अज्जकालए थेरे अंतेवासी गोयमसगुत्ते थेरस्सणं अज्जकालस्स गोयमसगुत्तस्स इमे दुवे थेरा तव्विवरीओ कालो संखज्जगुणाइ सेढीए।। अंतेवासी गोयमसगुत्ते अज्ज संपलिए थेरे अज्जभद्दे, एएसि दुन्हवि -आचारांगनियुक्ति, गाथा 222-223 (नियुक्तिसंग्रह, पृ०४४१) गोयमसगुत्ताणं अज्ज बुढे थेरे। 70. सम्यग्दृष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोपशान्त - कल्पसूत्र (मुनि प्यारचन्दजी, रतलाम)-स्थविरावली, पृ० 233 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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