Book Title: Neminath
Author(s): Surendra Bothra
Publisher: Surendra Bothra

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Page 2
________________ हृदय भर आया। मेरे कारण इतने निरीह प्राणियों की निमर्म हत्या?नहीं, यह उचित नहीं है। मुझे इस निर्दय परंपरा को समाप्त कर संसार को करुणा और अहिंसा का मार्ग दिखाना चाहिए। कुमार अरिष्टनेमि ने अपना हाथी रुकवाया और महावत से कहा कि वह जाकर सब पशु-पक्षियों को मुक्त कर दे। निरीह प्राणियों को मुक्त करके महावत वापस लौटा तो कुमार ने अपने सभी आभूषण उतारकर उसे दे दिए और द्वारका की ओर लौट चलने को कहा। राजा समुद्रविजय श्रीकृष्ण आदि सभी गुरुजनों ने उन्हें रोककर मनाने का अथक प्रयत्न किया, किंतु उनके हाथ असफलता ही लगी। कुमार को नहीं रुकना था तो नहीं रुके। उन्होंने कहा, जैसे पशु-पक्षी बंधन में बंधे थे वैसे ही हम सभी कर्मों के बंधन में बंधे करुणाविहीन जीवन बिताते हैं। अन्यों को कष्ट देते हैं और फलस्वरूप स्वयं कष्ट पाते हैं। मुझे इन बंधनों से मुक्त होने के लिए करुणा और अहिंसा के पथ को प्रशस्त करना है। कृपया क्षमा करें। स्व-दीक्षा के पश्चात् भगवान अरिष्टनेमि को चौवन दिन की साधना के बाद ही केवल ज्ञान प्राप्त हो गया। इसके बाद नेमिनाथ ने दीर्घ काल तक घूम-घूमकर अहिंसा का उपदेश दिया। एक बार श्रीकृष्ण भोग-विलास में अनुरक्त यादवों के भविष्य की चिंता लेकर उनके पास पहुंचे। नेमिनाथ ने मद्य-मांस के सेवन में लिप्त यादवों का भविष्य अंधकारमय बताया और उसे रोकने को कहा। श्रीकृष्ण को बात समझ में आ गई। उन्होंने उस समय द्वारका में जितना भी मद्य था, वह सारा वन में फिंकवा दिया और मांस-मद्य को एक प्रकार से प्रतिबंधित कर दिया। किसी राज्य शासन द्वारा अमारी का नियम लागू करने का संभवत यह प्रथम उदाहरण है और इसके प्रेरक थे भगवान अरिष्टनेमि।

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