Book Title: Nemichandraji Maharaj
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

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________________ श्री नेमिचन्द्रजी महाराज ६०५ . स्थानकवासी परम्परा के एक अध्यात्मकवि श्री नेमिचन्द्रजी महाराज ००१ ० 0 * श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री सन्त साहित्य भारतीय साहित्य का जीवनसत्व है । साधना के अमर-पथ पर निरन्तर प्रगति करते हुए आत्मबल के धनी संतों ने जिस सत्य के दर्शन किये उसे सहज, सरल एवं बोधगम्य वाणी द्वारा 'सर्वजन सुखाय, सर्वजन हिताय' अभिव्यक्त किया। जीवन काव्य के रचयिता, आत्मसंगीत के उद्गाता, संतों ने अपनी विमल वाणी में जो अनमोल विचार रत्न प्रस्तुत किये हैं, वे युग-युग तक मानवों को अन्तस्श्रेयस की ओर प्रतिपल-प्रतिक्षण बढ़ने की पवित्र प्रेरणा देते रहेंगे । संतों के विचारों की वह अमर ज्योति जो हृदयस्पर्शी पदों में व्यक्त हुई है, वह कभी भी बुझ नहीं सकती, उसका शाश्वत प्रकाश सदा जगमगाता रहेगा । उनकी काव्य सुरसरि का प्रवाह कभी सूखेगा नहीं किन्तु बहता ही रहेगा जिसका सेवन कर मानव अमरत्व को उपलब्ध कर सकता है। कविवर्य नेमीचन्द्र जी महाराज एक क्रान्तद्रष्टा, विचारक संत थे । वे विकारों व रूढ़ियों से लड़े और स्थितिपालकों के विरुद्ध उन्होंने क्रान्ति का शंख फूंका, विपरीत परिस्थितियाँ उन्हें डिगा नहीं सकी और विरोध उन्हें अपने लक्ष्य से हिला नहीं सका। वे मेरु और हिमाद्रि की तरह सदा स्थिर रहे, जो उनके जीवन की अद्भुत सहिष्णुता, निर्भीकता और स्पष्टवादिता का प्रतीक है । वे सत्य को कटु रूप में कहने में भी नहीं हिचके । यही कारण है कि उनकी कविता में कबीर का फक्कड़पन है और आनन्दधन की मस्ती है और समयसुन्दर की स्वाभाविकता है। साथ ही उनमें ओज, तेज और संवेग है। कवि बनाये नहीं जाते किन्तु वे उत्पन्न होते हैं । यद्यपि कविवर नेमीचन्द महाराज ने अलंकार शास्त्र, रीतिप्रन्थ और कवित्व का विधिवत शिक्षण प्राप्त किया हो ऐसा ज्ञात नहीं होता। जब हृदय में भावों की बाढ़ आयी और वे बाहर निकलने के लिए छटपटाने लगे तब सारपूर्ण शब्दों का सम्बल पाकर कविता बन गयी। कवि पर काव्य नहीं किन्तु काव्य पर कवि छाया है। उनके कवित्व में व्यक्तित्व और व्यक्तित्व में कवित्व इस तरह समाहित हो गया है जैसे जल और तरंग । उनकी अपनी शैली है, लय है, कंपन है और संगीत है । उनकी कविताओं में कहीं कमनीय कल्पना की ऊंची उड़ान है, कहीं प्रकृति नटी का सुन्दर चित्रण है तो कहीं शब्दों की सुकुमार लड़ियाँ और कड़ियाँ हैं, भक्ति व शान्तरस के साथ-साथ कहीं पर वीररस और कहीं पर करुणरस प्रवाहित हुआ है। यह सत्य है कि कवि की सूक्ष्म कल्पना प्रकृति-चित्रण करने की अपेक्षा मानवीय भावों का आलेखन करने में अधिक सक्षम रही है । कवि के जीवन में अध्यात्म का अलौकिक तेज निखर रहा है, उसकी वाणी तपःपूत है और उसमें संगीत की मधुरता भी है। कविवर्य नेमीचन्द जी महाराज एक विलक्षण प्रतिभासम्पन्न संत थे। वे आशुकवि थे, प्रखर प्रवक्ता थे, . आगम साहित्य धर्म और दर्शन के मर्मज्ञ विद्वान् थे और सरल, सरस लोकप्रिय काव्य के निर्माता थे। नेमीचन्द जी महाराज का लम्बा कद, श्याम वर्ण, विशाल भव्य माल, तेजस्वी नेत्र, प्रसन्न वदन और श्वेत परिधान से ढके हुए रूप को देखकर दर्शक प्रथम दर्शन में ही प्रभावित हो जाता था। वह ज्यों-ज्यों अधिकाधिक मुनिश्री के सम्पर्क में आता त्यों-त्यों उसे सहजता, सरलता, निष्कपटता, स्नेही स्वभाव, उदात्त चिन्तन व आत्मीयता की सहज अनुभूति होने लगती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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