Book Title: Naywad Siddhant aur Vyavahar ki Tulna par
Author(s): Krupashankar Vyas
Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf

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Page 7
________________ 276 धर्म और दर्शन यदि व्यक्ति (चाहे वह राजनैतिक क्षेत्र का कार्यकर्ता हो या सामाजिक क्षेत्र का) केवल मात्र स्वमत का ही आग्रह करता रहेगा तो उस व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विरोध की अभिवृद्धि ही होती रहेगी / परिणामतः द्वेष, कटुता, संघर्ष, हिंसा आदि बुरी प्रवृत्तियों को जन्म मिलेगा। ऐसे अवसर पर व्यक्ति विरोध पर विजय प्राप्ति हेतु येन-केन-प्रकारेण प्रयास करेगा, जिसका फल होगा व्यक्ति की नैतिकता का अवमूल्यन / इस प्रकार व्यक्ति की संगठनात्मक तथा क्रियात्मक शक्ति विघटन तथा विध्वंसक कार्यों की ओर अभिमुख हो जायेगी, जिसके परिणाम आज हम सभी किसी-न-किसी रूप में अनुभव कर रहे हैं। अतः इस संत्रस्त तथा कुंठाग्रस्त युग की आवश्यकता है कि युवाशक्ति को विवेकीकृत ज्ञान से असहिष्णुता, दुराग्रह तथा हठवादिता के पथ से शालीनता पूर्वक विमुख कर उसे वैचारिक-धरातल पर सहिष्णुता, सह-अस्तित्व तथा समरसता के सिद्धान्त की ओर दिशा देने की। तभी व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र न केवल भौतिक उन्नति के चरम बिन्दु पर पहुंच सकता है अपितु पुनः अध्यात्मजगत का गुरुपद अधिगत कर सकता है। इस प्रकार नयवाद का पक्षधर विशालहृदय, उदारचेता होकर विश्वबन्धुत्व सर्वजनीन का पोषक होकर भगवान महावीर के “जियो और जीने दो" के सिद्धान्त का यथार्थ मसीहा बन सकता है। बया र आनन्द-वचनामृत AYA 0 विद्वान और समझदार से मित्रता करना कठिन है, किंतु निभाना सरल है / मुर्ख और नासमझ से मित्रता करना सरल है, किंतु निभाना कठिन है। - साधारण मनुष्य ऊबने पर मनोरंजन के साधनों की तलाश करता है, किंतु ज्ञानी साधक मनोनिमग्न (मन के भीतर डूबने) होने की चेष्टा करता है। मन का ऊबना प्रमाद है, मन के भीतर डूबना साधना है। 0 काम करते-करते थक जाने पर नीरसता आती है, काम करते-करते पक जाने पर सरसता मिलती है। 7 शिक्षा से भी अधिक महत्व है संस्कारों का। अशिक्षित व्यक्ति या कम शिक्षित व्यक्ति भी साधना के पथ पर बढ़ सकता है, और साधना के चरम शिखर तक पहुँच भी सकता है, किंतु संस्कार-हीन व्यक्ति के लिए साधनापथ पर एक चरण रखने को भी स्थान नहीं / ല 1 संस्कारहीनता साधना का सबसे पहला शत्रु है। 0 शिक्षा से संस्कार जगें या नहीं, पर सुसंस्कारों से शिक्षा (ज्ञान) अवश्य प्राप्त हो जाती है। संस्कार-हीन शिक्षा निष्प्राण देह की सज्जा है। संस्कार-युक्त शिक्षा प्राणवान देह का श्रृंगार है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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