Book Title: Namaskar Mahamantra Ek Vishleshan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 6
________________ १२२ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड हमने अभयदेवसूरि की वृत्ति के आधार पर भगवती सूत्र में णमो सब्यसाहूणं' को मूलपाठ और णमो लोए सव्वसाहूणं' को पाठान्तर स्वीकृत किया है । इसका यह अर्थ नहीं है कि णमो लोए सवसाहूणं' सर्वत्र पाठान्तर है। आवश्यक सूत्र में हमने ‘णमो लोए सब्यसाहूणं' को ही मूलपाठ माना है। हमने आगम-अनुसन्धान की जो पद्धति निर्धारित की है, उसके अनुसार हम प्राचीनतम प्रति या चूणि, वृत्ति आदि व्याख्या में उपलब्ध पाठ को प्राथमिकता देते हैं। सबसे अधिक प्राथमिकता आगम में उपलब्ध पाठ को देते हैं। आगम के द्वारा आगम के पाठ संशोधन में सर्वाधिक प्रामाणिकता प्रतीत होती है। इस पद्धति के अनुसार हमें सर्वत्र णमो लोए सव्वसाहूणं' इसे मूलपाठ के रूप में स्वीकृत करना चाहिए था, किन्तु नमस्कार मन्त्र किस आगम का मूलपाठ है, इसका निर्णय अभी नहीं हो पाया है। यह जहाँ कहीं उपलब्ध है वहाँ ग्रन्थ के अवयवरूप में उपलब्ध नहीं है, मंगलवाक्य के रूप में उपलब्ध है । आवश्यकसूत्र के प्रारम्भ में नमस्कार मन्त्र मिलता है। किन्तु वह आवश्यक का अंग नहीं है। आवश्यक के मूल अंग मामायिक, चतुर्विशतिस्तव आदि हैं । इस दृष्टि से भगवती सूत्र में नमस्कार मन्त्र का जो प्राचीन रूप हमें मिला वही हमने मूलरूप में स्वीकृत किया । अभयदेवसूरि की व्याख्या से प्राचीन या समकालीन कोई भी प्रति प्राप्त नहीं है। यह वृत्ति ही सबसे प्राचीन है। इसलिए वृत्तिकार द्वारा निर्दिष्ट पाठ और पाठान्तर का स्वीकार करना ही उचित प्रतीत हुआ। णमो सव्वसाहूणं' पाठ मौलिक है या 'णमो लोए सव्वसाहूणं' पाठ मौलिक है-इसकी चर्चा यहाँ अपेक्षित नहीं है। यहाँ इतनी ही चर्चा अपेक्षित है कि अभयदेवसूरि को भगवती सूत्र की प्रतियों में णमो सब्बसाहूणं' पाठ प्राप्त हुआ और क्वचित् 'णमो लोए सव्वसाहूणं' पाठ मिला। णमो अरहंतानं-नमो सव-सिधानं यह पाठान्तर खारवेल के हाथीगुफा लेख में मिलता है।' इसमें अन्तिम नकार भी णकार नहीं है, सिद्ध के साथ सर्व शब्द का योग है और 'सिधानं' में द्वित्व 'ध' प्रयुक्त नहीं है। यह पाठ भी बहुत पुराना है, इसलिए इसे भी उपेक्षित नहीं किया जा सकता। नमस्कार महामन्त्र का मूल स्रोत नमस्कार महामन्त्र आदि-मंगल के रूप में अनेक आगमों और ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। अभयदेवसूरि ने भगवती सूत्र की वृत्ति के प्रारम्भ में नमस्कार महामन्त्र की व्याख्या की है। प्रज्ञापना के आदर्शों में प्रारम्भ में नमस्कार महामन्त्र लिखा हुआ मिलता है। किन्तु मलयगिरि ने प्रज्ञापना वृत्ति में उसकी व्याख्या नहीं की। षट्खण्ड के प्रारम्भ में नमस्कार महामन्त्र मंगलसूत्र के रूप में उपलब्ध है। इन सब उपलब्धियों से उसके मूल स्रोत का पता नहीं चलता। महानिशीथ में लिखा है कि पंचमंगल महाश्रु तस्कंध का व्याख्यान सूत्र की नियुक्ति, भाष्य और चूणियों में किया गया था और वह व्याख्यान तीर्थंकरों के द्वारा प्राप्त हुआ था। कालदोष से वे नियुक्ति, भाष्य और चूणियाँ विच्छिन्न हो गई। फिर कुछ समय बाद वज्रस्वामी ने नमस्कार महामन्त्र का उद्धार कर उसे मूल सूत्र में स्थापित किया। यह बात वृद्ध सम्प्रदाय के आधार पर लिखी गई है। इससे भी नमस्कार मन्त्र के मूल स्रोत पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता । १. प्राचीन भारतीय अभिलेख, द्वितीय खण्ड, पृष्ठ २६. २. इओ य वच्चंतेणं कालेणं समएणं महड्ढिपत्ते पयाणुसारी वइरसामी नाम दुवालसंगसुअहरे समुप्पन्ने। तेण य पंच मंगल महासुयक्खंधस्स उद्धारो मूल-सुत्तस्स मज्झेलिहिओ...""एस वुड्ढसंपयाओ। एयं तु जं पंचमंगलमहासुयक्खंधस्स वक्खाणं तं महया पबंधेण अणंतगयपज्जवेहि सुत्तस्स य पियभूयाहि णिजुत्तिभासचुन्नीहिं जहेव अणंतणाणदंसणधरेहिं तित्थयरेहि वक्खाणियं समासओ वक्खाणिज्जतं आमि । अहन्नयाकालपरिहाणिदोसेणं ताओ णिजुत्तिभास-चुन्नीओ वुच्छिन्नाओ। -महानिशीथ, अध्ययन ५, अभिधान राजेन्द्र, पृ० १८३५ । 0 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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