Book Title: Naitik Shiksha ki Vyavaharikta Author(s): Lalitprabhashreeji Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 2
________________ 82 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड . . . .... ..... ......... ... ... . .................................... हो रहा है। व्यापारियों का व्यापार में ब्लेक मार्केटिंग, चोर बाजारी, जमाखोरी, राजकर्मचारियों की घूसखोरी, विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता. कृषकों में कर्त्तव्यनिष्ठा की कमी, मजदूरों में श्रमनिष्ठा का अभाव, शिक्षकों का अशुद्ध व्यवहार आदि-आदि कारण सबके सामने हैं। इससे मानवता का ह्रास हुआ है। नैतिकता के अभाव में वह कराह रही है। सोना कहता है-कूटना, पीटना, गालना आदि सभी सह सकता हूँ, पर चिरमी के साथ तुलना असह्य है। मिट्टी की गगरी कहती है, पैरों के नीचे रौंदना, चाक पर चढ़ाना पीटना, अग्निस्नान सह्य है पर परखने के लिए अँगुली का टनका बर्दाश्त नहीं है / यह स्थिति वर्तमान की है। जो भारत नैतिकता व अध्यात्म की निर्मल गंगा था, जहाँ डुबकी लगाने दूर-दूर से विदेशी व्यक्ति आते थे वहाँ की यह स्थिति मन में असन्तोष पैदा करती है। सच है, क्रान्ति तभी हो सकती है जब कोई कार्य भी अपनी चरम-सीमा तक पहुँच जाता है / आज नैतिक मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता है। अध्यात्म के नैतिकता के आधार बिना मानव-विकास एकांगी है क्योंकि जिस मानव के लिए सब कुछ बनाया जाता है, जब वह स्वयं अनबना ही रह जाता है तो समस्या का हल नहीं हो सकता। नैतिक विकास की समस्या समाज के लिए स्थायी समस्या है जिसकी अपेक्षा अतीत में थी, भविष्य में रहेगी और वर्तमान में तीव्रता से बढ़ती जा रही है। इसलिए सर्वप्रथम मनुष्य की अन्तःवृत्तियों में परिष्कार हो, वह जितना नैतिकनिष्ठ व आचारनिष्ठ होगा, समाज उतना ही उन्नत होगा। नैतिक शिक्षा बुराई न करने का विश्वास पैदा करती है। आचार्य श्री तुलसी द्वारा प्रवर्तित नैतिक व चारित्रिक विकास की दिशा में अणुव्रत काफी वर्षों से कार्य कर रहा है। उनके विद्वान् साधु-साध्वियों द्वारा नैतिक स्तर ऊँचा उठाने हेतु राष्ट्र के प्रति कर्तव्य-भावना, श्रमनिष्ठा, अनुशासित जीवन जीना, संगठन, सेवा भावना जागृत करना, समन्वय की दिशा आदि मानवोचित गुणों पर आधारित नैतिक पाठमाला की रचना द्वारा बहुत अच्छा कार्य हुआ है और हो रहा है। इससे व्यवहार में शुद्धि को बहुत सम्बल मिला है- व्यापारी मिलावट न करें, ब्लेक-मार्केटिंग न करें, विद्यार्थी नकल न करें, तोड़-फोड़मूलक हिंसक प्रवृत्तियों में भाग न लें। प्रत्येक मानव व्यसनमुक्त जीवन जीए। यह है नैतिक शिक्षा का व्यावहारिक रूप जो जीवन का सही आदर्श है, आत्मनिरीक्षण करने का दर्पण है। धर्मराज युधिष्ठिर पाठशाला में पढ़ने गये / शिक्षक ने एक वाक्य सिखाया 'क्रोध मा कुरु" बहुत बार रटाया, सब विद्यार्थियों ने वापस सुना दिया पर युधिष्ठिर ने नहीं सुनाया / 2-3 दिन तक भी नहीं सुनाया, आखिर गुरु ने क्रुद्ध होकर तमाचा लगाया। तत्काल हँसते हुए बोले--गुरुजी, याद हो गया। यह थी नैतिक शिक्षा की व्यावहारिकता जो जीवन का अंग बने / सुमन की सुगन्ध फैलाने में हवा सहायक होती है, चन्दन की सुवास घिसने से फैलती है वैसे ही नैतिक शिक्षा सुमन की सौरभ फैलाने का माध्यम है व्यवहार / बच्चों को बचपन से ही संस्कारी बनाने के लिए विशेष प्रयास अपेक्षित है (बच्चों में अनुशासनहीनता, उद्दण्डता, उच्छं खलता फैली है उसका एक कारण है नैतिक शिक्षा का अभाव) वे केवल व्यवहार जैसा देखते हैं वैसे ही बन जाते हैं / बड़े होने पर वे ही संस्कार उन्हें उच्च आदर्श पर पहुँचाते हैं। महावीर, बुद्ध, ईसा, गांधी, नेहरू का रूप लेकर सामने आते हैं। बच्चों में अनुशासनहीनता, उद्दण्डता आदि हैं इसका कारण है-नैतिक शिक्षा का अभाव / इसलिए बालकों में चारित्रिक नैतिक विकास की अपेक्षा अनुभव कर आज से 33 वर्ष पूर्व केवल 5 छात्रों के आधार पर राणावास में एक प्राथमिक विद्यालय का शुभारम्भ किया गया, जिसके संरक्षक हैं श्री केसरीमलजी सुराणा। उनका यह प्रयास स्तुत्य है। वहाँ विद्यार्थियों में नैतिक आचरणनिष्ठता, परस्पर प्रेम, सौहार्द, संगठन, सेवा आदि संस्कार दिये जाते हैं ताकि भविष्य में वे संस्कार जीवन-निर्माण में सहयोगी बनें। इससे नैतिकता के प्रति आस्था जगी है, विचारों में परिवर्तन आया है। इससे वैचारिक क्रान्ति को नैतिक आचार संहिता का बड़ा योगदान रहा है। विद्यालय का रूप सुनने मात्र से ही नहीं, राणावास में जाकर देखा तो लगा वह छोटा-सा बीज आज वटवृक्ष बन गया है, प्राथमिक विद्यालय ने महाविद्यालय का रूप ले लिया है। वर्तमान में इसका रूप दर्शक को बंगाल के शान्तिनिकेतन की याद दिला देता है। 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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