Book Title: Mulachar me Varnit Achar Niyam Swetambara Agam Sahitya ke Pariprekshya me Author(s): Arun Pratap Sinh Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf View full book textPage 8
________________ मूलाचार में वर्णित आचार-नियम : श्वेताम्बर आगम साहित्य के परिप्रेक्ष्य में इस सम्बन्ध में अन्य भी प्रमाण दिये जा सकते हैं-- 1. मूलाचार की कुछ गाथाएँ ग्रन्थ में दो-दो बार आयीं हैं और उनमें शाब्दिक रूप से कोई परिवर्तन नहीं है। जैसे -- पाँचवें अधिकार की 54वीं एवं 62वीं गाथा द्वितीय अधिकार की 77वीं एवं ततीय अधिकार की 117दी गाथा पाँचवें अधिकार की 212वीं एवं दसवें अधिकार की 117वीं गाथा पाँचवें अधिकार की 167वीं एवं सातवें अधिकार की 87वीं गाथा इससे ऐसा प्रतीत होता है कि विभिन्न ग्रन्थों से छिटपुट गाथाएँ नहीं बल्कि गाथा समूह उठाकर एक स्थान पर रख दिया गया है। यह इसके संकलन ग्रन्थ होने का अकाट्य प्रमाण है। यदि यह किसी एक व्यक्ति की रचना होती तो गाथाओं की यह पुनरावृत्ति सम्भव नहीं थी। 2. मूलाचार में भिक्षुओं को कुछ ग्रन्थों को पढ़ने का निर्देश दिया गया है। इसमें "पत्तेयबद्धिकाथिदं13" का उल्लेख है। इससे किस ग्रन्थ का तात्पर्य है टीकाकार आचार्य वसुनन्दि स्पष्ट नहीं कर सकें हैं। इस ग्रन्थ से तात्पर्य स्पष्ट एवं निस्संकोच रूप से उत्तराध्ययन और इसिभासिय (ऋषिभाषित) नामक श्वेताम्बर प्रकीर्णक से लिया जाना चाहिए। ये ग्रन्थ निश्चित रूप से आचारांग आदि की तरह प्राचीन हैsa। ऋषिभाषित में 45 ऋषियों के उपदेश संकलित है और प्रत्येक ऋषि को प्रत्येकबुद्ध माना गया है। इसी प्रकार उत्तराध्ययन के अध्यायों को भी प्रत्येकबुद्ध भाषित माना गया है। जैसे-- नमिपव्वज्जा। 3. इसी प्रकार मूलाचार में अस्वाध्यायकाल में कुछ ग्रन्थों को पढ़ने का निर्देश दिया गया है। ये ग्रन्थ भी विचारणीय है। गाथा इस प्रकार है -- "आराहणाणिज्जुत्ती मरणाविभत्ती य संगहत्थुदिओ। पध्यक्खाणावासयधम्मकहाओ य परिसओ।। - मूलाधार, 5/82 . टीकाकार ने इस गाथा का संदेहास्पद अर्थ निकाला है। टीकाकार ने आराहणाणिज्जत्ती (आराधनानियुक्ति) को एक में कर दिया है, जो कि गलत है। प्रत्येक ग्रन्थ अलग-अलग है। मेरी समझ से आराधना से तात्पर्य भगवतीआराधना एवं नियुक्ति से तात्पर्य आवश्यकनियुक्ति आदि से है, जिसका मूलाचार के संकलनकर्ता ने कई बार उल्लेख किया है। मरणविभत्ती (मरणविभक्ति) एक प्राचीन श्वेताम्बर प्रकीर्णक है जिसमें संलेखना सम्बन्धी विवरण है। संगह (संग्रह) से आशय संग्रहणीसूत्र से हो सकता है। थुदिओ (स्तुतयः ) से तात्पर्य देविदत्यओ (देवेन्द्रस्तवः ) नामक प्रकीर्णक से हो सकता है। पच्चक्खाण (प्रत्याख्यान) ग्रन्थों से दो श्वेताम्बर प्रत्याख्यान प्रकीर्णकों -- आतुरप्रत्याख्यान एवं महाप्रत्याख्यान से हो सकता है, जिनकी अनेक गाथाओं को बिना कुछ परिवर्तन किये मूलाचारकर्ता ने अपने ग्रन्थ में स्थान दिया है। आक्सय (आवश्यक) से तात्पर्य आवश्यकसत्र से हो सकता है। धम्मकहा (धर्मकथा) से तात्पर्य ज्ञाताधर्मकथा से है। 4. दूसरे अधिकार में मूलाचार चंदयवेज्झ4 का उल्लेख करता है कि इससे मनुष्य मोक्ष-मार्ग को प्राप्त होता है इसकी भी टीका संदेहास्पद है। मेरी समझ से चन्दयवेज्झ से तात्पर्य "चन्द्रकवेध्या" नामक श्वेताम्बर प्रकीर्णक से है। इसमें मुख्यतः 7 बातें वर्णित हैं जिनका पालन करने पर मोक्ष प्राप्त होना बताया गया है। इन सात बातों में आध्यात्मिक गुरुओं के प्रति सम्मान, गुरु के गुण, शिष्य के गुण, ज्ञान, सुन्दर व्यवहार आदि की चर्चा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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