Book Title: Mulachar Ek Parichay Author(s): Fulchandra Jain Shatri Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 6
________________ 500 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेमाडक का विस्तृत वर्णन किया है, जिनका प्रतिपादन आचार्य वट्टकेर ने अपने मूलाचार में किया। मूलाचार के तीसरे व्याख्याकार आवार्य मेघवन्द्र हैं। इन्होंने इस पर कर्नाटक 'मूलाचारसद्वृत्ति' की रचना की। चतुर्थ कर्नाटक टीका "मुनिजन चिन्तामणि' नाम से मिलती है, इसमें मूलाचार को कुन्दकुन्दाचार्य की रचना बताया है। एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल की "लिस्ट ऑफ जैना एम.एस.एस.' (ग्रन्थ क्रमांक 1521) को देखने से ज्ञात होता है कि मेधावी कवि द्वारा रचित भी एक अन्य ‘मूलाचार टीका' है। वैसे १६वीं शती के मेधावी कवि द्वारा लिखित धर्मसंग्रहश्रावकाचार प्रसिद्ध ही है इन्हीं कवि का उक्त टीकाग्रन्थ भी संभव है। उपर्युक्त टीकाओं के अतिरिक्त वीरनन्दि ने मूलाचार के आधार पर 'आचारसार' ग्रन्थ की रचना की है। पं. आशाधर ने 'अनगारधर्मामृत नामक ग्रन्थ की रचना में इसी का आधार लिया है। पं. नन्दलाल छाबड़ा एव पं. ऋषभदास निगोत्या विरचित भाषावचनिका भी मूलाचार की व्याख्या में महत्त्वपूर्ण योगदान रखती है। -अध्यक्ष, जैनदर्शनविभाग सम्पूर्णानन्द संस्कृत विविद्यालय. वाराणसी (उ.प्र. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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