Book Title: Merutungasuriras ka Sar
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf

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Page 1
________________ मेरुतुगसूरिरास-सार -श्री भंवरलाल नाहटा ऐतिहासिक साहित्य के निर्माण की अोर जैन विद्वानों का लक्ष सदा से रहा है। रास, भास, गीत, गहूंली, विवाहला तीर्थमाला प्रभृति भाषा कृतियों का, काव्य, पट्टावली, चरित्र प्रभृति संस्कृत ग्रन्थों का प्राचुर्य इस बातका प्रबल उदाहरण है । हमें इस प्रकार के साधन प्रचुरता से उपलब्ध हुए जिनमें से कतिपय तो ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में हमने प्रकाशित किये। फिर भी जो प्राप्त होते हैं उन्हें समय-समय पर सामयिक पत्रों में देते रहते हैं जिससे जैन इतिहास के साधन विद्वानों के उपयोग में आ सके । कुछ वर्ष पूर्व, मेरुतुगसूरि-रासकी नकल कलकत्त में इतिहासतत्त्वमहोदधि जैनाचार्य श्री विजयेन्द्रसूरि के पास देखी और उसका आवश्यक सार नोट कर लिया था परन्तु कई स्थान संदिग्ध रह जाने से अभी लीमड़ी के भंडारसे रासकी मूलप्रति मंगाकर नकल कर ली और पाठकों की जानकारी के लिए ऐतिहासिक सार प्रकाशित किया जाता है । अंचलगच्छ में भी मेरुतुगसूरि बड़े प्रभावक और विद्वान आचार्य हुए हैं। अंचलगच्छीय म्होटी पट्टावली (गुजराती अनुवाद) जो कच्छ अंजारवाले शा. सोभचन्द धारणी की तरफ से प्रकाशित हुई है, उसमें ५८वें पट्टधर श्री मेरुतुगसूरिजीका जीवनवृत्त प्रकाशित हुआ है। परन्तु कई बातें जनश्रुति के आधार से लिखी हुई हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से संशोधन की अपेक्षा रखती हैं। प्रस्तुत रास, सूरिजीके समकालीन-उनके स्वर्गवासके बाद शीघ्र ही रचित होनेसे इसमें वरिणत वृत्तांत प्रामाणिक हैं, कुछ बातें पट्टावलीमें विशेष हैं। खैर जो हो, बातोंमें अंतर हैं उनका दिग्दर्शन कराना ही यहाँ अभीष्ट है : १. पट्टावलीमें सूरिजीका जन्मस्थान नानागाम और जाति मीठडिया बहरा लिखी है, जबकि रास में नानीग्राम प्राग्वाट बहुरा जातिमें जन्म होने का उल्लेख है। २. माता का नाम पट्टावलीमें नाहुणदेवी और रासमें नालदेवी लिखा है। ३. दीक्षा संवत् पट्टावलीमें सं. १४१८ और रासमें १४१० लिखा है । ४. गृहस्थ नाम पट्टावलीमें मालव तथा रासमें वस्तिगकुमार लिखा है। ५. लोलाडईके नृप प्रतिवोचकी कथा पट्टावली में नहीं है, उसमें यवनसेनाके भय-निवर्तनार्थ सवा मन चावल मंत्रित कर देने और श्रावकों द्वारा उस सेनाके समक्ष फेंकनेसे शस्त्रधारी घुडसवार होने से यवनसेना के भग जानेसे भयनिवर्तन की कथा लिखी है। 2) શ્રી આર્ય કલ્યાણ ગૌતમસ્મૃતિગ્રંથ વિરુ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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