Book Title: Matruka Prakaran Ek Mahattvapurna Abhayasaniya Kruti Author(s): Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ केन्द्रमां तो वर्णाम्नाय ज छे, एटले एम कही शकाय के तर्क अने दर्शन शास्त्रनी दृष्टिए कर्ता वर्णाम्नाय विशे मीमांसा करे छे, अने तेमां ज समस्याओनी, द्रव्यक्षेत्रादि भेदे शब्दार्थ-भेदनी, अनेकान्तनी, चार निक्षेपनी- वगैरेनी वातो तार्किक शैलीमा निरूपे छे. एकंदरे, समग्र मातृकाप्रकरण अवलोकतां एवी प्राथमिक छाप पडे छे के आ ग्रंथ एक तरफथी तो व्याकरणविदोनो विषय बनी शके, तो बीजी तरफथी ते मन्त्रविदोनो पण विषय बनी ज शके. एटले आना अध्ययन माटे भाषाविज्ञाननी साथे साथे मंत्रविज्ञान- पण ज्ञान होय तो आ प्रकरणना हार्दनी वधु नजदीक पहोंची शकाय, तेम लागे छे. आ प्रकरणना कर्ता छे नागपुरीय बृहत्तपागच्छ-अपरनाम पार्श्वचन्द्रगच्छना आदिपुरुष गच्छपति आचार्यश्री पार्श्वचन्द्रसूरिजीना शिष्य वाचक रामचन्द्रगणीना शिष्य वाचक अक्षयचन्द्र गणी. संभवत: विक्रमना १६मा शतकमां के १७मा शतकना पूर्वभागमां थयेला आ ग्रंथकार विशद प्रतिभासम्पन्न होवा जोईए, अने तर्क-व्याकरण-साहित्य-मंत्रशास्त्र-जिनागम-षट्दर्शन इत्यादि अनेक अनेक विद्याशाखाओमां तेमनी अप्रतिहत गति होवी जोईए, एवं आ प्रकरणमांथी पसार थनारने प्रतीत थया विना नहि रहे. पोताना गुरुने याद करवा उपरांत, पोताना अन्य उपकारी बे गुरुजनो - श्री यशश्चन्द्र तथा श्री रत्नचन्द्र गुरुने पण तेमणे प्रांते संभार्या छे. कर्ता चोक्कसपणे आमांथी कोना शिष्य हशे ते तो तेमनी पट्टावली जोवाथी ज समजी शकाय. आ प्रकरण पर वर्षों पूर्वे डॉ. हरिवल्लभ भायाणीए काम करेलुं. तेमणे आनी नकल पण स्वयं करेली, आनो अंग्रेजी अनुवाद पण लखवा लीधेलो, अने भारतीय विद्या भवन के तेवी कोई संस्थाना आश्रये तेनुं प्रकाशन पण करवा लीधेलु, परंतु ते काम अधूरं ज वर्षो सुधी पड्युं रह्यु, अने पार पाडवानुं तेमनुं स्वप्न, पोतानां अन्यान्य गंजावर रोकाणोमां अटवायुं. थोडा वखत पूर्वे तेमणे मातृकाप्रकरण अंगेनी आ बधी सामग्री भरेली पोतानी जूनी फाइल मारा हाथमां सोंपी, कह्यु के तमे आ तैयार करो. में पहेली वखत आ प्रकरण जोयुं तथा तेना विशे सांभळ्युं. व्याकरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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