Book Title: Masihi Dharm me Karm ki Manyata Author(s): A B Shivaji Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf View full book textPage 5
________________ २०६ ] १ [ कर्म सिद्धान्त की जगह होती, परन्तु परमेश्वर के निकट नहीं ।" यह कथन करने वाला वही पौलुस है जो प्रभु यीशु मसीह का आरम्भ में शत्रु था किन्तु दर्शन पाने के बाद वह मसीह धर्म का अनन्य भक्त हुआ और अन्य शिष्यों के साथ यह विश्वास करने वाला हुआ कि “प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर तो तू और तेरा घराना उद्धार पायेगा" २ प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास ही उसका जीवन दर्शन था । नये नियम में उसके द्वारा लिखित कई पत्रियों में इस बात के प्रमाण हैं । जीवन में मोक्ष का आधार कर्म नहीं, विश्वास है । एक स्थान पर पौलुस कहता है कि "विश्वास से धर्मी जन- जीवित रहेगा ।" एक अन्य स्थान पर वह कहता है कि "यह बात प्रगट है कि व्यवस्था के द्वारा परमेश्वर के यहाँ कोई धर्मी नहीं ठहरता क्योंकि धर्मीजन विश्वास से जीवित रहेगा । ४ 3 प्रभु यीशु मसीह के अन्य शिष्यों ने भी विश्वास पर बल दिया है । इसी विश्वास को लेकर यूहन्ना प्रभु यीशु मसीह के शब्दों को लिखता है कि "यदि तुम विश्वास न करोगे कि मैं वही हूँ तो अपने पापों में मरोगे ।" ५ मसीह धर्म में शरीर और श्रात्मा के कर्म : मसीही धर्म में शरीर और आत्मा के कर्मों को गिनाया गया है। पवित्र शास्त्र बाइबल का दृष्टिकोण हमारे धार्मिक कार्यों के प्रति जो बिना विश्वास के हैं, मैले चिथड़ों के समान हैं । पुराने नियम में यशय्याह नबी की पुस्तक में बताया गया है कि "हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के . से हैं और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं ।"६ फिर भी शरीर और आत्मा के कर्मों में भेद किये गये हैं । इन भेदों का वर्णन पौलुस ने किया है । वह लिखता है - " शरीर के काम तो प्रकट हैं अर्थात् व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन, मूर्ति पूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्षा, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म, डाह, मतवलापन, लीला, क्रीड़ा, ऐसे-ऐसे काम करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे । पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता और संयम हैं, ऐसे-ऐसे कामों के विरोध में कोई व्यवस्था नहीं ।" ७ कर्मों के द्वारा ईश्वर की महिमा : कभी-कभी शुभ कर्म करने वाला व्यक्ति अर्थात् धर्मी व्यक्ति भी ईश्वर पर दोष लगाता है कि उसे अच्छे कर्म करते हुए भी विपत्ति, दुःख उठाने पड़ते हैं । बाइबल में ऐसे तीन उदाहरण हैं । एक पुराने नियम में और दो नये नियम में । १. रोमियो ४ : २ ३. रोमियो १ : १७ ५. यूहन्ना ८ : २४ ६. यशय्याह ६४ : ६ Jain Educationa International २. ४. प्रेरितो के काम १६ : ३१ गलतियो ३ : ११ ७. गलतियो ५ : १६-२३ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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