Book Title: Mantra Shakti Ek Chintan
Author(s): G R Jain
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ मन्त्र-शक्ति : एक चिन्तन 136 . मन्त्र दिये हुये हैं और मन्त्र को सिद्ध करने के लिए उसे विधिपूर्वक कई-कई दिन तक लाखों बार जपना पड़ता है, और उस मन्त्र के आराध्यदेव की उपवास सहित उपासना करनी पड़ती है। मन्त्र के सिद्ध हो जाने पर उसका सांसारिक कार्यों में भी उपयोग किया जा सकता है। यहाँ पर एक बात ध्यान देने योग्य है कि जिस प्रकार आधुनिक विज्ञान में शब्द की शक्ति को बढ़ाने के लिए उसकी कम्पन, आवृत्ति (Frequency) को लाखों की संख्या पर पहुंचाना पड़ता है, जैसा कि ऊपर कर्ण-अगोचर नाद की व्याख्या में लिखा जा चुका है। ठीक उसी प्रकार किसी भी मन्त्र को सिद्ध करने के लिए उसको लाखों बार जपना पड़ता है; क्योंकि एक सेकण्ड में लाखों शब्दों का बोलना तो मनुष्य की शक्ति के परे है। अनेक सांसारिक कार्यों के लिए अनेक प्रकार के मन्त्रों का वर्गीकरण किया गया है जैसे सिद्धि-दाता मन्त्र, आरोग्य-दाता मन्त्र, वशीकरण मन्त्र, सम्मोहन मन्त्र, स्तम्भन, उच्चाटन और मारण आदि के मन्त्र / प्राचीन मान्यता ऐसी है कि देवताओं के विमान मन्त्र की शक्ति से चलते थे, इंजिन की शक्ति से नहीं। यद्यपि शिल्प-संहिता और सम्रांगणसूत्रधार नाम के प्राचीन ग्रन्थों में इंजन बनाने की विधियाँ दी हुई हैं और लिखा है कि रावण का पुष्पक-विमान पारे की भाप से चलता था, न कि पानी की भाप से। आज भी यूरोप और अमरीका के अनेक स्थानों पर पारे की भाप के इंजन चल रहे हैं। पारे की भाप के इंजन, पानी की भाप के मुकाबले में कई गुना ज्यादा अच्छा काम करते हैं। शब्द की शक्ति का चमत्कार देखिये / ऐसी रोबट (Robot) मोटर-कारें बन गयी हैं कि जो आपके कहने के अनुसार काम करती हैं। आप गाड़ी में बैठे और कहा कि "चलो", गाड़ी चल पड़ी। आपने कहा कि "रुको", गाड़ी रुक गयी। आपने कहा "पीछे लौटो", गाड़ी लौट पड़ी। यह होता है सब यन्त्रों की सहायता से, मगर शब्दों की शक्ति के द्वारा / ग्वालियर में लोगों ने मुझे बताया था कि उन्होंने स्वयं अपनी आँखों से ग्वालियर के भट्टारक की पालकी को बिना कहारों के चलते हुए देखा। ध्वनि या शब्द माइक्रोफोन पर पड़ते ही बिजली की लहर बन जाते हैं और आज संसार के सभी काम बिजली की सहायता से हो रहे हैं। अतएव यह बात समझ में आती है कि मन्त्र की शक्ति से कार्य का होना कोई असंगत बात नहीं हैं। *** अनित्यबाह्यभावेषु, प्रियाऽप्रियविकल्पतः / रागवृत्तिस्तथा ज्ञेया, द्वेषवृत्तिविचक्षणः // चञ्चला हि मनोवृत्तिरसद्ध यानपरम्परा। भववृद्धिकरी सैव, विना साम्येन दुर्जया // -गि. प. शाह 'कल्पेश' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3