Book Title: Mangal Pravachan Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf View full book textPage 3
________________ मंगल प्रवचन इसलिए इस समय विद्यार्थीका जरा-सा भी प्रमादी होना जीवन के मध्य बिन्दुपर कुठाराघात करना है । मैं थोड़ा बहुत कालेज विद्यार्थियोंके बीच रहा हूँ और मैंने देखा है कि उनमें से बहुत कम विद्यार्थी प्राप्त समय और शक्तिका संपूर्ण जागृतिपूर्वक उपयोग करते हैं। किसी न किसी तरह परीक्षा पास करनेका लक्ष्य होनेसे विद्यार्थीके बहुमूल्य समयका और शक्तिका ठीक उपयोग नहीं हो पाता । मेरे एक मित्रने -- जो कि इस समय कुशल वकील और प्रजासेवक हैं, मुझसे कहा कि हम विद्यार्थी - खासकर बुद्धिमान् गिने जानेवाले विद्यार्थी — रात और दिनका बहुत बड़ा भाग गप्पें हाँकने और अनावश्यक वाक्युद्ध करनेमें व्यतीत कर देते थे और यह मान बैठे थे कि परीक्षा पास करनेमें क्या है ? जब परीक्षा समीप आवेगी, तब तैयारी कर लेंगे और वैसा कर भी लेते थे । किन्तु जब बी० ए० पास हुए और आगे उच्च अध्ययनका विचार किया तब मालूम हुआ कि हमने प्रारंभके चार वर्षों का बहुत-सा समय व्यर्थ ही बरबाद कर दिया है । उस समय अपने पूरे सामर्थ्य और समयका ठीक ढंगसे नियमित सदुपयोग किया होता, तो हमने कालेज जीवनमें जितना प्राप्त किया उससे बहुत अधिक प्राप्त कर लेते। मैं समझता हूँ कि मेरे मित्रकी बात बिलकुल सच्ची है और वह कालेजके प्रत्येक विद्यार्थीपर कम या अधिक अंश में लागू होती है। इसलिए मैं प्रत्येक विद्यार्थीका ध्यान जो इस समय कालेज में नया प्रविष्ट हुआ हो या आगे बढ़ा हो, इस ओर खींचता हूँ । कालेजके जीवनमें इतने अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं कि यदि मनुष्य सोचे तो अपना संपूर्ण नवसर्जन कर सकता है। वहाँ भिन्न भिन्न विषयों के समर्थ अध्यापक, अच्छेसे अच्छा पुस्तकालय और नये रक्तके उत्साहसे उफनते हुए विद्यार्थियों का सहचार जीवनको बनानेकी अमूल्य सम्पत्ति है । केवल उसका उपयोग करनेकी कला हाथ आनी चाहिए । १९५ जीवन-कला विद्यार्थी जीवन में यदि कोई सिद्ध करने योग्य तत्व है, तो वह है जीवनकला । जो जीनेकी कलाको हस्तगत कर लेता है वह साधन तथा सुविधाकी कमी विषयमें कभी शिकायत नहीं करता । वह तो अपने सामने जितने और जैसे साधन होते हैं, जितनी और जैसी सुविधायें होती हैं, उनका इतने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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