Book Title: Manav dharm ke Praneta Mahavir
Author(s): Sardarsinh Choradiya
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

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________________ भारतीय क्षितिज पर उदित महापुरुषों की महान परम्परा में तीर्थकर महावीर एक ऐसे महामानव थे जिन्होंने प्रचलित परम्परागत मान्यताओं से हटकर उच्चतम मानवीय मूल्यों की स्थापना की। उनसे पूर्व का समाज परम्परागत तथा कृत्रिम मूल्यों पर आधारित होने से विषमता, पाखण्ड, अन्धविश्वास, रूढ़िग्रस्तता तथा संकुचित भावनाओं के प्रभाव के कारण जर्जरित होता जा रहा था । चन्द-उच्च सत्ता, प्रतिष्ठा एवम् अधिकार प्राप्त शक्तिशाली व्यक्तियों का सम्पूर्ण मानव समाज व्यवस्था पर नियन्त्रण था। इसे स्थिर रखने के उद्देश्य से उन्होंने समाज में ऐसी दूषित व्यवस्था को जन्म दे रखा था जिसमें मानवीय मूल्यों को तिलांजलि दे दी गई थी। Sama 30 मार्च, ई. पू. 599 (चैत्र शुक्ला त्रयोदशी) को वैशाली के राजपरिवार में जन्मे राजकुमार बर्द्धमान ने तत्कालीन परिस्थितियों से प्रेरणा ग्रहण कर, श्रमण तीर्थ करों की परम्परा को आगे बढ़ाते हए अहिंसा मानव धर्म के प्रणेता तीर्थंकर महावीर को समतामयी भूमिका में प्रतिष्ठित कर उस युग की चिन्तनधारा को सर्वत्र चुनौती दी । शास्वत एवम् सर्वागीण दर्शन के माध्यम से उन्होंने तत्कालीन समाज में व्याप्त दोषपूर्ण व्यवस्था के विभिन्न पक्षों, ईश्वरवाद, पाखण्डवाद, वहुदेवोपासना, कर्मकाण्ड, लोकभाषा का अभाव, नरबलि, पशवलि तथा नारी जाति के साथ दुर्व्यवहार जैसी कुप्रथाओं एवं व्यवस्थाओं से ग्रस्त सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार कर मानवीय जीवन के मौलिक पक्ष को प्रस्तुत कर मानवीय मूल्यों की स्थापना की। सरदारसिंह चोरडिया वर्ण व्यवस्था का खण्डन : वर्द्धमान महावीर को जिस व्यवस्था के विरुद्ध सर्वाधिक संघर्ष करना पड़ा, वह थी तत्कालीन समाज में प्रचलित वर्ण व्यवस्था, जो जन्मना जाति के सिद्धान्त पर आधारित होने से विषमता की प्रमुख ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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