Book Title: Malva ki Parmarkalin Jain Pratimaye
Author(s): Mayarani Arya
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ मालवा की परमारकालीन जैन प्रतिमाएं - डॉ० (श्रीमती) मायारानी आर्य मालवा क्षेत्र में परमार-काल में शैव तथा वैष्णव धर्म के साथ ही साथ इस वैभवशाली भूमि में जैनधर्म का प्रचार-प्रसार भी अपनी दिशा में निरन्तर प्रगति की ओर बढ़ता रहा । जैन मंदिरों की स्थापना कर उनमें तीर्थंकरों की प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठापित की गईं। एक जैन पट्टावली' के अनुसार ५६वें जैनाचार्य मघचन्द्र ने उज्जैन से १०८३ ई० में जैन धम का प्रचार किया था व पश्चिमी मालवा में उनके प्रभाव से अनेक श्रेष्ठि वर्ग ने दान देकर इन मंदिरों का निर्माण करवाया था। मालवा के जैनाचार्यों में अमितगति, महासेन, धनपाल, जिनदत्त, परमार राजा वाक्पधि मुंज जैन ग्रंथों व जैन मंदिरों के निर्माण में प्रसिद्ध हैं । बारहवीं शताब्दी के मध्य श्री देवधर उज्जैन के जैनसंघ के प्रमुख आचार्य थे जिन्होंने मालवा में जैन मंदिरों के निर्माण में योगदान दिया । भोजपुर' में आदिनाथ की 20 फीट ऊँची प्रतिमा प्राप्त हुई है जिसके वाहन व यक्षिणी चक्रेश्वरी से पहचान की गई है। भोज के समय शांतिनाथ की प्रतिमा सागरनंदि ने स्थापित करवाई थी। इसी स्थान पर नरवर्धन के शासनकाल में चिल्लन नामक व्यक्ति ने पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित करवाई थी। वैसे यह भोजपुर के जैन मंदिर में है और उसकी चौकी पर संवत् ११५७ (११०० ई०) के लेख में नेमिचन्द्र के पौत्र तथा श्रेष्ठिन् राम के पुत्र चिल्लन के द्वारा दो जिन तीर्थंकरों की प्रतिमा स्थापित करने का उल्लेख है। समरांगण सूत्र के अनुसार तीर्थकरों की प्रतिमा शास्त्रीय विन्यास की दृष्टि से आजानुबाहु, श्री वत्सलांछन, सौम्य एवं शान्त, नग्न रूप, तरुणावस्था व विशिष्ट वृक्ष से संबंधित रहती थी। यही शास्त्रीय रूप प्रकल्पित था। दशपुर से अजितनाथ, सुमतिनाथ, शीतलनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ की वाहनयुक्त प्रतिमाएं और यक्षिणी पद्मावती की प्रतिमाएं मिली हैं। गंधावल' व ऊन में इस काल की तीर्थंकर प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं। उज्जैन से प्राप्त ध्यानावत्थित महावीर के प्रतिमा-फलक में ऊपर वादक-गण संगीत के वाद्य लिये प्रसन्नता व्यक्त कर रहे हैं । एक आकृति नृत्य-मुद्रा में है, शेष सब बाँसुरी, तुरही व घड़ियाल बजा रहे हैं। इन सबका अंकन रचना-विन्यास की दृष्टि से कलात्मक है। यहां विमलनाथ, अभिनंदननाथ व पार्श्वनाथ की कुछ प्रतिमाओं पर वि० सं० १११३-१११६ के लेख उत्कीण हैं। करेड़ी से ११वीं शताब्दी की नेमिनाथ की प्रतिमा मिली है । इसी प्रकार की आदिनाथ की प्रतिमा भी इसी काल को मिली है। इसके गोमुखी यक्ष व चक्रेश्वरी यक्षिणी अलंकरणयुक्त हैं। यहीं से शान्तिनाथ की एक अन्य प्रतिमा संवत् १२४२ (११६४ ई०) की भव्य एवं सुन्दर कलायुक्त रूप में प्राप्त हुई है। ऊन से श्रेयांसनाथ की गेंडा वाहन वाली प्रतिमा अभिलेखिक आधार १. इंडि० एण्टि, भाग २० व २१, पृष्ठ-५८ २. तिलकमंजरी, पृ० १०२ ३. आ० स० इं० १९२७-२०, पृष्ठ-४८ ४. वही, १९३५-३६, पृ०८३ ५. इपि० इंडि० भाग, ३५, पृष्ठ १८५ ६. वही, भाग ३५, पृष्ठ १८६ ७. समरांगण सूत्रधार, ५०, १० ८. आ० स० ई०, १६१८-१९ पृ० २२ है. इंडि०, एण्टि, भाग ११, पृष्ठ २५५ जैन इतिहास, कला और संस्कृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2