Book Title: Malav Sanskruti me Dharmikta ke Swar Author(s): Shrichand Jain Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf View full book textPage 8
________________ 268 मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ (9) यथाशक्ति तप एवं जप साधना / (10) व्यसन परिहार प्रतिज्ञा / (11) नियमित रूप से प्रार्थना, व्याख्यान, श्रवण एवं ज्ञान चर्चा / ऊपर बताये गये साधनों के अतिरिक्त और भी ज्ञान वृद्धि के प्रचुर साधन मौजूद हैं। जिनकी आराधना करने पर नि:सन्देह ज्ञान की अभिवृद्धि होती है एवं संसार की विभीषिका से संतप्त आत्माओं का उद्धार भी निहित है। धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययनअध्यापन एवं अनुशीलन-परिशीलन आत्म-मुमुक्षुओं के लिए सुखद-सुगम सोपान है / जो मालवा के धार्मिक स्थानकों में, उपाश्रयों में, संस्थाओं में, एवं साधु-साध्वियों में सुगमता से उपलब्ध हो सकता है या सीखा जा सकता है। अनेक जैन सन्तों के नामों पर स्थापित ज्ञान-मन्दिर, शास्त्र-भण्डार एवं स्वाध्याय भवन आदि ज्ञान चेतना के स्थाई रूप हैं / लोक जीवन की धूमिल धारणा को कई रूपों में धार्मिकता के भव्य रंगों से अलंकृत करती है। भव्य जनों के मधुर कण्ठों से मुखरित भजन-स्तवन आत्मोत्थान की पर्याप्त प्रेरणा देते हैं / गीत-गान की यह परिपाटी शीतल-समीर धारा के समान सन्तप्त मानव को सदा शान्त करती है। - धार्मिक अवसरों पर जो जागरण करने की व्यवस्था है वह कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। यह भ्रमित जन को एकाग्र चित्त, व्यग्र मानव को शान्त और अव्यवस्थित चेतन को व्यवस्थित करती है / मालव के कई जैन उपासना गृहों में जैन भक्तजन भक्तामर, कल्याण मन्दिर, चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र, महावीराष्टक आदि स्तोत्रों का बड़ी तन्मयतापूर्वक अखण्ड पाठ किया करते हैं / यह परिवारी विमोहित आत्मा को सन्मार्ग का पथिक बनाने में परम सहायक मानी गई है। जैन कथा, लोक-गाथा एवं लोक नाट्यों आदि के अतिरिक्त जैन सूत्रों में धार्मिक शिक्षणपरक कई दृष्टान्त चित्रों की स्वस्थ परम्परा रही है। इनमें नारकीय जीवन की यातनापरक चित्रों की बहुलता मिलती है ताकि उनको देखकर प्रत्येक मानव अपने जीवन को अच्छा बनाने का प्रयत्न करे। नारकीय जीवन सम्बन्धी चित्रों में मुख्यतया पाप, अन्याय, अत्याचार, छल, प्रपंच, ईर्ष्या, द्वेष, क्लेश तथा अनैतिक कार्यों के चित्र चित्रित किये हुए मिलते हैं। मनोरंजन के माध्यम से भी धार्मिक शिक्षण प्रदान करने के कई तरीके हमारे यहां प्रचलित रहे हैं। ___ इस प्रकार विविध रूपों में अभिव्यक्त इन धार्मिकता के स्वरों से मालव की सांस्कृतिक चेतना चिरकाल से जीवंत बनी है। प्राचीन मालवा का इतिहास यह प्रमाणित करता है कि यह धरा श्रमण-धर्म परम्परा को धारण करके ही सार्थक बनी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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